चरख़ Poetry

भगवान-राम

चरख़ चिन्योटी

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

उजड़ी हुई बस्ती की सुब्ह ओ शाम ही क्या

ज़ेब ग़ौरी

किस क़यामत की घुटन तारी है

ज़करिय़ा शाज़

आसूदा-ए-महफ़िल अभी दम भर न हुआ था

ज़हीर अहमद ताज

'यास' इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए'तिबार

यगाना चंगेज़ी

बुत-परस्ती से न तीनत मिरी ज़िन्हार फिरी

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

पत्थर नज़र थी वाइ'ज़-ए-ख़ाना-ख़राब की

वसीम ख़ैराबादी

हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती

वामिक़ जौनपुरी

दिल अज़ल से मरकज़-ए-आलाम है

वामिक़ जौनपुरी

कभी लुत्फ़-ए-ज़बान-ए-ख़ुश-बयाँ थे

वाजिद अली शाह अख़्तर

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम

कर सके दफ़्न न उस कूचे में अहबाब मुझे

मीर तस्कीन देहलवी

ढलती रात

तख़्त सिंह

मिट गए हाए मकीं और मकान-ए-देहली

तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ख़ान कौकब देहलवी

साक़ी हो और चमन हो मीना हो और हम हों

ताबाँ अब्दुल हई

किसी का काम दिल इस चर्ख़ से हुआ भी है

ताबाँ अब्दुल हई

खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस

ताबाँ अब्दुल हई

काबा है अगर शैख़ का मस्जूद-ए-ख़लाइक़

ताबाँ अब्दुल हई

इंक़लाब

सय्यद तसलीम हैदर क़मर

सब्र-ओ-तस्लीम की सिपर भी नहीं

सय्यद सिद्दीक़ हसन

शिकवे ज़बाँ पे आ सकें इस का सवाल ही न हो

सय्यद हामिद

शिकवा गर कीजे तो होता है गुमाँ तक़्सीर का

सय्यद हामिद

फ़र्द को अस्र की रफ़्तार लिए फिरती है

सय्यद हामिद

लरज़ रहा था फ़लक अर्ज़-ए-हाल ऐसा था

सय्यद अमीन अशरफ़

वो बज़्म-ए-ग़ैर में बा-सद-वक़ार बैठे हैं

सय्यद अाग़ा अली महर

सीने में आग आँख सू-ए-दर लगी रहे

सय्यद अाग़ा अली महर

बे-जुर्म-ओ-बेगुनाह ग़रीब-उल-वतन किया

सय्यद अाग़ा अली महर

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