चीख Poetry

कुछ ऐसे वस्ल की रातें गुज़ारी है मैं ने

अमित सतपाल तनवर

चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद

अहमद नदीम क़ासमी

आँख हो और कोई ख़्वाब न हो

फ़ारूक़ इंजीनियर

विरासत

बुशरा सईद

फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को

सफ़ा और सिद्क़ के बेटे

ज़ुबैर रिज़वी

सँभाला

ज़िया जालंधरी

इताब-ओ-क़हर का हर इक निशान बोलेगा

ज़की तारिक़

तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करे

ज़ैग़म हमीदी

मेरा कोई दोस्त नहीं

ज़ाहिद इमरोज़

मेरा ग़ुस्सा कहाँ है?

ज़ाहिद इमरोज़

गाड़ी की खिड़की से देखा शब को उस का शहर

ज़ाहिद फ़ारानी

मिरा क़लम मिरे जज़्बात माँगने वाले

ज़फ़र गोरखपुरी

सुर्ख़ लावे की तरह तप के निखरना सीखो

याक़ूब राही

पीपल

वज़ीर आग़ा

दरमाँदा

वज़ीर आग़ा

अंधी काली रात का धब्बा

वज़ीर आग़ा

जो सोचते रहे वो कर गुज़रना चाहते हैं

वक़ार फ़ातमी

बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम

वाली आसी

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

चार साल बा'द

तनवीर अंजुम

भूली-बिसरी रात

तख़्त सिंह

ज़वाल की आख़िरी हिचकियाँ

तबस्सुम काश्मीरी

ज़वाल की आख़िरी चीख़

तबस्सुम काश्मीरी

ए-के-शैख़ के पेट का कुत्ता

तबस्सुम काश्मीरी

दर्द सीने में कहीं चीख़ रहा हो जैसे

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

सफ़ेद घोड़े पर सवार अजनबी

सुलतान सुबहानी

हरा शजर न सही ख़ुश्क घास रहने दे

सुल्तान अख़्तर

आख़िरी लफ़्ज़ पहली आवाज़

सुलैमान अरीब

तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ

सुलैमान अरीब

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