दयार Poetry

हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सलाम लोगो

हबीब जालिब

गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

सूरज की पहली किरन

अमजद इस्लाम अमजद

बुझ कर भी शो'ला दाम-ए-हवा में असीर है

ज़ेब ग़ौरी

उस ने निगाह-ए-लुत्फ़-ओ-करम बार बार की

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

उसी की धुन में कहीं नक़्श पा गया है मिरा

ज़ाहिद फ़ारानी

गो मुब्तला-ए-गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर हूँ मैं

ज़ाहिद चौधरी

अब दर्द बे-दयार है और जग-हँसाई है

ज़हीर फ़तेहपूरी

ग़म इतने अपने दामन-ए-दिल से लिपट गए

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का

यगाना चंगेज़ी

जो तुझे और मुझे एक कर सका नहीं

वक़ार ख़ान

सफ़र है ख़त्म मगर बे-घरी न जाएगी

वली आलम शाहीन

हम अजनबी हैं आज भी अपने दयार में

वहीदा नसीम

रौशन हों दिल के दाग़ तो लब पर फ़ुग़ाँ कहाँ

वहीदा नसीम

पहुँच गए हैं हम ऐसे दयार में कि 'वहीद'

वहीद क़ुरैशी

जिधर निगाह उठी खिंच गई नई दीवार

वहीद क़ुरैशी

हमेशा ख़ून-ए-शहीदाँ के रंग से आबाद

वहीद क़ुरैशी

जिस जगह भी मिला घना साया

विश्वनाथ दर्द

फ़िक्र का कारोबार था मुझ में

विकास शर्मा राज़

निफ़ाक़

उरूज क़ादरी

सफ़र की हद थी जो रात थी

उमर फ़रहत

कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी

तिलोकचंद महरूम

किसी दयार किसी दश्त में सबा ले चल

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

भटकें हैं आप के लिए तन्हा कहाँ कहाँ

तरुणा मिश्रा

सिसकती मज़लूमियत के नाम

तारिक़ क़मर

मैं दयार-ए-क़ातिलाँ का एक तन्हा अजनबी

तालिब जोहरी

बहुत से दर्द थे पर ख़ुद को जोड़ कर रक्खा

सय्यद काशिफ़ रज़ा

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के

सुरूर बाराबंकवी

साअत-ए-मर्ग-ए-मुसलसल हर नफ़स भारी हुई

सुल्तान अख़्तर

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