दीद Poetry

ऐसा नहीं कि मुँह में हमारे ज़बाँ नहीं

फ़र्रुख़ जाफ़री

वो जिस को देखने इक भीड़ उमडी थी सर-ए-मक़्तल

ज़ुबैर रिज़वी

तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना

ज़ुबैर रिज़वी

क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए

ज़ुबैर रिज़वी

फिर दिल को रोज़ ओ शब की वही ईद चाहिए

ज़ुबैर रिज़वी

मुझे तुम शोहरतों के दरमियाँ गुमनाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

ये तो हाथों की लकीरों में था गिर्दाब कोई

ज़िया ज़मीर

वो किताब

ज़ेहरा निगाह

हमें तो आदत-ए-ज़ख़्म-ए-सफ़र है क्या कहिए

ज़ेहरा निगाह

हिकायत-ए-गुरेज़ाँ

ज़ाहिदा ज़ैदी

नहीं ये रस्म-ए-मोहब्बत कि इश्तिबाह करो

ज़ाहिद चौधरी

अब उस की दीद मोहब्बत नहीं ज़रूरत है

ज़फ़र इक़बाल

हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत

ज़फ़र इक़बाल

अपने इंकार के बर-अक्स बराबर कोई था

ज़फ़र इक़बाल

तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया

यूसुफ़ ज़फ़र

पास होते हुए जुदा क्यूँ है

यूनुस ग़ाज़ी

मिला है तपता सहरा देखने को

यज़दानी जालंधरी

ढूँढता हक़ को दर-ब-दर है तू

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

सुख़न को बे-हिसी की क़ैद से बाहर निकालूँ

याक़ूब यावर

रौशनी मेरे चराग़ों की धरी रहना थी

याक़ूब यावर

इतनी तो दीद-ए-इश्क़ की तासीर देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें

वासिफ़ देहलवी

वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे

वासिफ़ देहलवी

बे-इश्क़ जितनी ख़ल्क़ है इंसाँ की शक्ल में

वलीउल्लाह मुहिब

मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो

वलीउल्लाह मुहिब

देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे

वली उज़लत

मावरा

वहीद अख़्तर

जाने किस किस ने हमें ताकीद की

उर्मिलामाधव

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