दीवाना Poetry

हम उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं

अख़्तर हाशमी

गुल-बदन गुल-एज़ार आ जाओ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

डाकू

ज़ेहरा निगाह

वो और मोहब्बत से मुझे देख रहा हो

ज़ेब ग़ौरी

आलम से फ़ुज़ूँ तेरा आलम नज़र आता है

ज़ेब ग़ौरी

अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है

ज़मीर अतरौलवी

साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे

ज़की काकोरवी

ख़ाक पर ही मिरे आँसू हैं न दामन में कहीं

ज़ेब उस्मानिया

किसी की याद-ए-रंगीं में है ये दिल बे-क़रार अब तक

ज़हीर अहमद ताज

नश्र मुकर्रर

ज़ाहिद मसूद

मैं हूँ वहशत में गुम मैं तेरी दुनिया में नहीं रहता

ज़हीर काश्मीरी

यूँ तो होते हैं मोहब्बत में जुनूँ के आसार

ज़हीर देहलवी

तल्ख़ शिकवे लब-ए-शीरीं से मज़ा देते हैं

ज़हीर देहलवी

हरीफ़-ए-राज़ हैं ऐ बे-ख़बर दर-ओ-दीवार

ज़हीर देहलवी

खिड़की से महताब न देखो

ज़फ़र कलीम

उन की महफ़िल में 'ज़फ़र' लोग मुझे चाहते हैं

यूसुफ़ ज़फ़र

है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी

यूसुफ़ ज़फ़र

शिर्क का पर्दा उठाया यार ने

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

अयाँ हो आप बेगाना बनाया

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

नहीं मा'लूम अब की साल मय-ख़ाने पे क्या गुज़रा

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

रौशन तमाम काबा ओ बुत-ख़ाना हो गया

यगाना चंगेज़ी

क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना

वासिफ़ देहलवी

वो ग़म अता किया दिल-ए-दीवाना जल गया

वसीम बरेलवी

सिर्फ़ तेरा नाम ले कर रह गया

वसीम बरेलवी

कभी सिसकी कभी आवाज़ा सफ़र जारी है

वक़ार ख़ान

उन की चश्म-ए-मस्त में पोशीदा इक मय-ख़ाना था

वक़ार बिजनोरी

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