धूप Poetry

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

तहरीर

बलराज कोमल

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

न सारे ऐब हैं ऐब और हुनर हुनर भी नहीं

फ़रहत अली ख़ान

जो महका रहे तेरी याद सुहानी में

बीना गोइंदी

आकाश पे बादल छाए थे

बीना गोइंदी

मैं रस्ते में जहाँ ठहरा हुआ था

वफ़ा नक़वी

हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है

महमूद शाम

बे-साया पेड़

काशिफ़ रफ़ीक़

मौसम

बलराज कोमल

नज़्म

अख़्तर हुसैन जाफ़री

स्कूल

अख़्तर हुसैन जाफ़री

मोहब्बत ख़्वाब जैसी है

फ़ाख़िरा बतूल

दश्त में धूप की भी कमी है कहाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

किस का चेहरा ढूँडा धूप और छाँव में

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

वो सानेहा हुआ था कि बस दिल दहल गए!

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हम ने सारे हर्फ़ लिखे तो किस के लिए

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

तेवर भी देख लीजिए पहले घटाओं के

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

दिल में रक्खा था शरार-ए-ग़म को आँसू जान के

ज़ुहैर कंजाही

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए

ज़ुबैर रिज़वी

पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम

ज़ुबैर रिज़वी

मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

ग़ुरूब-ए-शाम ही से ख़ुद को यूँ महसूस करता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

छोड़ कर घर की फ़ज़ा रानाइयाँ पछता गईं

ज़ुबैर रिज़वी

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