दिन Poetry (page 57)

हो तेरी याद का दिल में गुज़र आहिस्ता आहिस्ता

हसन अकबर कमाल

सुब्ह आँख खुलती है एक दिन निकलता है

हसन आबिदी

कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए

हसन आबिदी

सुनहरे ख़्वाब आँखों में बुना करते थे हम दोनों

हसन अब्बासी

रात-दिन पुर-शोर साहिल जैसा मंज़र मुझ में था

हसन अब्बासी

शाएरी पूरा मर्द और पूरी औरत माँगती है

हसन अब्बास रज़ा

छाजों बरसती बारिश के बाद

हसन अब्बास रज़ा

रिया-कारियों से मुसल्लह ये लश्कर मुझे मार देंगे

हसन अब्बास रज़ा

कल शब क़सम ख़ुदा की बहुत डर लगा हमें

हसन अब्बास रज़ा

इरादा था कि अब के रंग-ए-दुनिया देखना है

हसन अब्बास रज़ा

हम परियों के चाहने वाले ख़्वाब में देखें परियाँ

हसन अब्बास रज़ा

था आसमान पर जो सितारा नहीं रहा

हसन आबिद

शहर में शोर है उस शोख़ के आ जाने का

हसन आबिद

मुझे किसी से किसी बात का गिला ही नहीं

हसन आबिद

उस दिन

हारिस ख़लीक़

रज़िया-सुल्ताना कोरंगी, ''के'' एरिया

हारिस ख़लीक़

क़िस्सा-ख़्वानी बाज़ार की एक शाम

हारिस ख़लीक़

इल्तिजा

हारिस ख़लीक़

अली-मोहसिन एम.बी.ए, ख़ालिद-बिन-वलीद रोड

हारिस ख़लीक़

हाँ वो दिन याद हैं जब हम भी कहा करते थे

हरी चंद अख़्तर

जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास

हरी चंद अख़्तर

तेरे हुस्न की ख़ैर बना दे इक दिन का सुल्तान मुझे

हरबंस तसव्वुर

दश्त में मिस्ल सदा के थे

हरबंस तसव्वुर

सैद को रश्क-ए-चमन दाम ने रहने न दिया

हक़ीर जहानी

चार दिन की बहार है सारी

हक़ीर

तिफ़्ली पीरी ओ नौजवानी हेच

हक़ीर

किस की उस तक रसाई होती है

हक़ीर

रात ढलते ही सफ़ीरान-ए-क़मर आते हैं

हनीफ़ फ़ौक़

वो निगह जब मुझे पुकारती थी

हम्माद नियाज़ी

जब मुंडेरों पे परिंदों की कुमक जारी थी

हम्माद नियाज़ी

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