प्रमुख Poetry

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

कोई भी दर न मिला नारसी के मरक़द में

ज़ेब ग़ौरी

हर सम्त शोर-ए-बंदा ओ साहिब है शहर में

ज़फ़र अज्मी

कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग

वली उज़लत

ज़हे क़िस्मत अगर तुम को हमारा दिल पसंद आया

तिलोकचंद महरूम

सूरत-ए-इश्क़ बदलता नहीं तू भी मैं भी

तौक़ीर तक़ी

अक्सर मिरे शेरों की सना करते रहे हैं

तालीफ़ हैदर

यूँ भी तो तिरी राह की दीवार नहीं हैं

तालीफ़ हैदर

है शैख़ ओ बरहमन पर ग़ालिब गुमाँ हमारा

शौक़ बहराइची

अधूरा जिस्म लिए पीछे हट रहा हूँ मैं

शारिक़ जमाल

संग मजनूँ पे लड़कपन में उठाया क्यूँ था

शकील शम्सी

मुझे तस्लीम बे-चून-ओ-चुरा तू हक़-ब-जानिब था

शहराम सर्मदी

ख़ौफ़ से अब यूँ न अपने घर का दरवाज़ा लगा

शाहिद मीर

जश्न-ए-ग़ालिब

साहिर लुधियानवी

दिल्ली की बस

साग़र ख़य्यामी

'बेदिल' का तख़य्युल हूँ न ग़ालिब की नवा हूँ

सादिक़ नसीम

इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है

साबिर दत्त

नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़

रिन्द लखनवी

ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम

रईस अमरोहवी

मिरे पाँव में पायल की वही झंकार ज़िंदा है

इरम ज़ेहरा

जिला

इंजिला हमेश

बहे साथ अश्क के लख़्त-ए-जिगर तक

इम्दाद इमाम असर

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

'हबीब-जालिब'

हसन आबिदी

ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ

हक़ीर

चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़

हबीब मूसवी

मीर के बाद ग़ालिब ओ इक़बाल

गुलज़ार देहलवी

उम्र जो बे-ख़ुदी में गुज़री है

गुलज़ार देहलवी

थकन ग़ालिब है दम टूटे हुए हैं

ग़नी एजाज़

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

ग़ालिब

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