घर Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

इश्क़ उस से किया है तो ये गर याद भी रक्खो

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

तिरे बग़ैर लग रहा है ये सफ़र ख़मोश है

एज़ाज़ काज़मी

बहुत ख़ूब नक़्शा मिरे घर का है

फ़ारूक़ इंजीनियर

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

कहाँ तहरीरें मैं ने बाँट दी हैं

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

चले हैं साथ हम अंजान हो कर

फ़रह शाहिद

भली हो या कि बुरी हर नज़र समझता है

अतुल अजनबी

मुसलमान और हिन्दोस्तान

हिन्दी गोरखपुरी

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

भए कबीर उदास

हबीब जालिब

हिजरत

ग़ज़नफ़र

गुल-ओ-गुलज़ार गुहर चाँद सितारे बच्चे

फ़ारूक़ इंजीनियर

इक उम्र से जिस को लिए फिरता हूँ नज़र में

अहमद फ़ाख़िर

कभी जो नूर का मज़हर रहा है

अली अकबर अब्बास

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

गुंग हैं सारी ज़मीनें आसमाँ हैरत-ज़दा

आज़ाद हुसैन आज़ाद

जिस के दिल में कोई अरमान नहीं होता है

अख़्तर आज़ाद

कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया

वफ़ा नक़वी

मस्जिद-ओ-मंदिर का यूँ झगड़ा मिटाना चाहिए

अख़्तर आज़ाद

प्यार का यूँ दस्तूर निभाना पड़ता है

वलीउल्लाह वली

एक तो इश्क़ की तक़्सीर किए जाता हूँ

नईम गिलानी

दिल से अरमाँ निकल रहे हैं

अख़्तर सईद

सामाँ तो बेहद है दिल में

अनवर शऊर

सुकूत उस का है सब्र-ए-जमील की सूरत

अज़्म शाकरी

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

मौसम हो कोई याद के खे़मे नहीं उठते

वफ़ा नक़वी

आख़िर हम ने तौर पुराना छोड़ दिया

अर्श सिद्दीक़ी

इमारत हो कि ग़ुर्बत बोलती है

वलीउल्लाह वली

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