गाँठ Poetry

शम्अ'

मुबश्शिर अली ज़ैदी

महा-भारत

ग़ज़नफ़र

शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

वक़्त कातिब है

ज़िया जालंधरी

इम्कान

ज़िया जालंधरी

वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा

ज़हीर काश्मीरी

इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा

ज़हीर काश्मीरी

मुस्तरद हो गया जब तेरा क़ुबूला हुआ मैं

ज़फ़र इक़बाल

क़ैद-ए-उल्फ़त का मज़ा ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर में है

यूनुस ग़ाज़ी

लिपटी हुई फिरती है नसीम उन की क़बा से

वहीद अख़्तर

हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे

उनवान चिश्ती

ख़्वाब तो ख़्वाब है ता'बीर बदल जाती है

तनवीर अहमद अल्वी

कमंद-ए-हल्क़ा-ए-गुफ़तार तोड़ दी मैं ने

तनवीर अहमद अल्वी

ला-यख़ुल

तहसीन फ़िराक़ी

मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है

तहसीन फ़िराक़ी

आशिक़-ए-हक़ हैं हमीं शिकवा-ए-तक़दीर नहीं

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

ज़र्ब-उल-मसल हैं अब मिरी मुश्किल-पसंदियाँ

सिराज लखनवी

हर लग़्ज़िश-ए-हयात पर इतरा रहा हूँ मैं

सिराज लखनवी

बे-समझे-बूझे मोहब्बत की इक काफ़िर ने ईमान लिया

सिराज लखनवी

ख़ूब बूझा हूँ मैं उस यार कूँ कुइ क्या जाने

सिराज औरंगाबादी

जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का

सिराज औरंगाबादी

हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का

सिराज औरंगाबादी

दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया

सिराज औरंगाबादी

ऐ दिल-ए-बे-अदब उस यार की सौगंद न खा

सिराज औरंगाबादी

ऐ बाग़-ए-हया दिल की गिरह खोल सुख़न बोल

सिराज औरंगाबादी

अदल-ए-जहाँगीरी

शिबली नोमानी

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

ज़ौक़

शब-ए-वा'दा कह गई है शब-ए-ग़म दराज़ रखना

शाज़ तमकनत

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