गुलिस्ताँ Poetry

नज़्म

मुबश्शिर अली ज़ैदी

'मजाज़' की मौत पर

द्वारका दास शोला

यौम-ए-बर्क़

बिर्ज लाल रअना

दिल्ली पे क़ुर्बान

इज़हार मलीहाबादी

ज़ाबता

हबीब जालिब

हर वो हंगामा ना-गहाँ गुज़रा

फ़रज़ाना हूँ और नब्ज़-शनास-ए-दो-जहाँ हूँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे

ज़ुबैर रिज़वी

दूरी

ज़िया जालंधरी

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी

ज़िया फ़तेहाबादी

उठो कि जश्न-ए-ख़िज़ाँ हम मनाएँ जी भर के

ज़ेहरा निगाह

मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

नियाज़-ओ-नाज़ के साग़र खनक जाएँ तो अच्छा है

ज़ेब बरैलवी

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

हमराह लुत्फ़-ए-चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी आएगी

ज़हीर काश्मीरी

कुफ़्र में भी हम रहे क़िस्मत से ईमाँ की तरफ़

ज़हीर देहलवी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

ग़ुरूर-ओ-नाज़-ओ-तकब्बुर के दिन तो कब के गए

ज़हीर अहमद ज़हीर

उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं

यगाना चंगेज़ी

दाग़-ए-जुनूँ दिमाग़-ए-परेशाँ में रह गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल

वज़ीर अली सबा लखनवी

नहीं मालूम कितने हो चुके हैं इम्तिहाँ अब तक

वासिफ़ देहलवी

बुझते हुए चराग़ फ़रोज़ाँ करेंगे हम

वासिफ़ देहलवी

जमालियात

वामिक़ जौनपुरी

नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद

वली उज़लत

कुफ़्र मोमिन है न करना दिलबराँ से इख़्तिलात

वली उज़लत

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