हाथ Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इश्क़ उस से किया है तो ये गर याद भी रक्खो

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

दिन हो कि हो वो रात अभी कल की बात है

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

आस

ममता तिवारी

एज़रा-पउंड की मौत पर

अख़्तर हुसैन जाफ़री

उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना

ज़ुबैर शिफ़ाई

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

राब्ता टूट न जाए कहीं ख़ुद-बीनी से

असरार ज़ैदी

तस्वीर तेरी यूँ ही रहे काश जेब में

आमिर अमीर

नज़र को क़ुर्ब-ए-शनासाई बाँटने वाले

हनीफ़ राही

जो सकूँ न रास आया तो मैं ग़म में ढल रहा हूँ

अख़्तर आज़ाद

आख़िर हम ने तौर पुराना छोड़ दिया

अर्श सिद्दीक़ी

दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर

बिमल कृष्ण अश्क

ख़ुश-शनासी का सिला कर्ब का सहरा हूँ मैं

अब्दुल्लाह कमाल

ऐ लाहौर

जीलानी कामरान

जवाँ होता बुढ़ापा

ममता तिवारी

असातीरी नज़्म

जवाज़ जाफ़री

सियासी मस्लहत

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

मोहब्बत पर यक़ीं था जब

हमीदा शाहीन

मसीहा

फ़ाख़िरा बतूल

चारागर

दर्शन सिंह

मोहब्बत ख़्वाब जैसी है

फ़ाख़िरा बतूल

छोटे क़द के लोग

एहतिशाम अख्तर

इंतिज़ार के बा'द

सदियों के बाद होश में जो आ रहा हूँ मैं

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मिरी ख़ाक में विला का न कोई शरार होता

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

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