हैरान Poetry

चले हैं साथ हम अंजान हो कर

फ़रह शाहिद

चाँद तारे जिसे हर शब देखें

अनवर अंजुम

कभी ख़ुशबू कभी आवाज़ बन जाना पड़ेगा

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है

ज़ुबैर रिज़वी

फिर उसी धुन में उसी ध्यान में आ जाता हूँ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

कही अन-कही

ज़िया जालंधरी

शहर के एक कुशादा घर में

ज़ेहरा निगाह

रास्ते

ज़ेहरा निगाह

अब तो कुछ ऐसा लगता है

ज़ेहरा निगाह

गड़ही मेरा

ज़ीशान साहिल

दुल्हन

ज़ीशान साहिल

दिल मुज़्तरिब है और परेशान जिस्म है

ज़ीशान साहिल

ख़ाक आईना दिखाती है कि पहचान में आ

ज़ेब ग़ौरी

रेज़ा रेज़ा अपना पैकर इक नई तरतीब में

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

ऐसे लम्हे पर हमें क़ुर्बान हो जाना पड़ा

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

किस की आशुफ़्ता-मिज़ाजी का ख़याल आया है

ज़हीर देहलवी

पान बन बन के मिरी जान कहाँ जाते हैं

ज़हीर देहलवी

कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे

ज़फ़र इक़बाल

कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे

ज़फ़र इक़बाल

शहर लगता है बयाबान मुझे

यूसुफ़ ज़फ़र

इक बे-पनाह रात का तन्हा जवाब था

यासमीन हमीद

मैं और तू

वज़ीर आग़ा

लगता है इन दिनों के है महशर-ब-कफ़ हवा

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

बे-नियाज़ नग़्मा-ए-दुनिया हूँ मैं

वलीउल्लाह वली

आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब

वलीउल्लाह मुहिब

इतना हैरान न हो मेरी अना पर प्यारे

विपुल कुमार

इस ख़राबी की कोई हद है कि मेरे घर से

विपुल कुमार

मेहंदी

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है

तसनीम आबिदी

बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर

तसनीम आबिदी

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