इकाई Poetry

विसाल

बलराज कोमल

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया

वफ़ा नक़वी

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं

अर्श सिद्दीक़ी

चाँदनी-रात में बुलाऊँ तुझे

बीना गोइंदी

गाँधी के बा'द

इज़हार मलीहाबादी

तलाश-ए-नूर

दर्शन सिंह

क़र्या-ए-वीराँ

मुख़्तार सिद्दीक़ी

अहिंसा की पहली सुनहरी किरन

मुझे ज़मान-ओ-मकाँ की हुदूद में न रख

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

मिरी ज़ात का हयूला तिरी ज़ात की इकाई

ज़ुहैर कंजाही

मेरा सारा बदन राख हो भी चुका मैं ने दिल को बचाया है तेरे लिए

ज़ुबैर फ़ारूक़

अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में

ज़ोहरा नसीम

मेरे गिर्या से न आज़ार उठाने से हुआ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

उस को जाते हुए देखा था पुकारा था कहाँ

ज़िया ज़मीर

सुनो

ज़ेहरा अलवी

ग़ुबार-ए-इश्क़ से हस्ती को भरने वाला हूँ मैं

ज़ीशान साजिद

रास्ते में कहीं खोना ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

पहले मुझ को भी ख़याल-ए-यार का धोका हुआ

ज़ेब ग़ौरी

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

गो मिरी हर साँस इक पेगाज़-ए-सरमस्ती रही

ज़ेब ग़ौरी

तू अपने जैसा अछूता ख़याल दे मुझ को

ज़रीना सानी

लायल-पूर के मच्छर

ज़रीफ़ जबलपूरी

ग़ज़ल के शानों पे ख़्वाब-ए-हस्ती ब-चश्म-ए-पुर-नम ठहर गए हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

क्या कहें हम थे कि या दीदा-ए-तर बैठ गए

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

लुत्फ़ आता है उन्हें हर ज़ुल्म-ए-नौ-ईजाद में

ज़ैनब बेगम इबरत

ख़ुद को दुनिया में जो राज़ी-ब-रज़ा कहते हैं

ज़ेब उस्मानिया

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