हिज्र Poetry

न सारे ऐब हैं ऐब और हुनर हुनर भी नहीं

फ़रहत अली ख़ान

नफ़रतों की नई दीवार उठाते हुए लोग

एहतिमाम सादिक़

लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया

नसीम शेख़

था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

प्यार का यूँ दस्तूर निभाना पड़ता है

वलीउल्लाह वली

इश्क़ को आँख में जलते देखा

नजमा शाहीन खोसा

हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था

आशू मिश्रा

नूर अँधेरे की फ़सीलों पे सजा देता हूँ

ग़म के बे-नूर मज़ारों का गला घोंट आया

दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू

बे-सबात सुब्ह शाम और मिरा वजूद

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

रात गुज़री न कम सितारे हुए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें

ज़ुहूर नज़र

इक तेरे सिवा

ज़ुबैर रिज़वी

मुझे तुम शोहरतों के दरमियाँ गुमनाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

मिलन मौसमों की सज़ा चाहता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

शिकस्ता ख़्वाब मिरे आईने में रक्खे हैं

ज़ुबैर क़ैसर

कहीं से आया तुम्हारा ख़याल वैसे ही

ज़ुबैर क़ैसर

अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है

ज़ुबैर अली ताबिश

कोई भी रस्ता बहुत सोच कर चुनूँगा मैं

ज़िया मज़कूर

राहत-ए-वस्ल बिना हिज्र की शिद्दत के बग़ैर

ज़िया ज़मीर

कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल

ज़ेहरा निगाह

छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए

ज़ेहरा निगाह

क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर

ज़ेबा

ज़िंदगानी की हक़ीक़त तब ही खुलती है मियाँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दर्द शायान-ए-शान-ए-दिल भी नहीं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे

ज़की तारिक़

साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे

ज़की काकोरवी

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