जान Poetry (page 32)

का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम

हातिम अली मेहर

जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा

हातिम अली मेहर

इश्क़-ए-जान-ए-जहाँ नसीब हुआ

हातिम अली मेहर

हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम

हातिम अली मेहर

चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं

हातिम अली मेहर

आफ़्ताब अब नहीं निकलने का

हातिम अली मेहर

मुझ से तन्हाई में गर मिलिए तो दीजे गालियाँ

हसरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है

हसरत मोहानी

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

क़वी दिल शादमाँ दिल पारसा दिल

हसरत मोहानी

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है

हसरत मोहानी

महरूम-ए-तरब है दिल-ए-दिल-गीर अभी तक

हसरत मोहानी

जो वो नज़र बसर-ए-लुत्फ़ आम हो जाए

हसरत मोहानी

हुस्न-ए-बे-परवा को ख़ुद-बीन ओ ख़ुद-आरा कर दिया

हसरत मोहानी

घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता

हसरत मोहानी

दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया

हसरत मोहानी

ख़ुदा जाने किस किस की ये जान लेगी

हसरत जयपुरी

ये कौन आ गई दिल-रुबा महकी महकी

हसरत जयपुरी

क्या कहूँ तुझ से मिरी जान मैं शब का अहवाल

हसरत अज़ीमाबादी

कम-तर या बेशतर गए हम

हसरत अज़ीमाबादी

कब तलक हम को न आवेगा नज़र देखें तो

हसरत अज़ीमाबादी

दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का

हसरत अज़ीमाबादी

तू नहीं है तो तिरे हमनाम से रिश्ता रक्खा

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तमाशा अहल-ए-मोहब्बत ये चार-सू करते

हाशिम रज़ा जलालपुरी

परिंदा क़ैद में कुल आसमान भूल गया

हाशिम रज़ा जलालपुरी

दश्त में ख़ाक उड़ाते हैं दुआ करते हैं

हाशिम रज़ा जलालपुरी

ज़रा सी चोट लगी थी कि चलना भूल गए

हसीब सोज़

शौक़ से आप ये अंग्रेज़ी दवा भी लेते

हसीब सोज़

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