जुस्तजू Poetry (page 7)

मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही

इरम ज़ेहरा

अपने ग़रीब दिल की बात करते हैं राएगाँ कहाँ

इरम लखनवी

न रहा ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मुझ को

इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया

इक़बाल सुहैल

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

इक़बाल साजिद

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए

इक़बाल अज़ीम

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

इक़बाल अज़ीम

बर्ग ठहरे न जब समर ठहरे

इक़बाल अासिफ़

ठहर के देख तू इस ख़ाक से क्या क्या निकल आया

इमरान शमशाद

हमारी मोहब्बत नुमू से निकल कर कली बन गई थी मगर थी नुमू में

इमरान शमशाद

कोई क़र्या कोई दयार हो कहीं हम अकेले नहीं रहे

इलियास इश्क़ी

ये बहार वो है जहाँ रही असर-ए-ख़िज़ाँ से बरी रही

इलियास इश्क़ी

न-जाने कौन तिरे काख़-ओ-कू में आएगा

इलियास बाबर आवान

है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा

इफ़्तिख़ार नसीम

इल्तिजा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शौक़

इफ़्तिख़ार आज़मी

शब-ए-फ़ुर्क़त की तन्हाई का लम्हा

इफ़्फ़त अब्बास

रह-ए-जुस्तुजू में भटक गए तो किसी से कोई गिला नहीं

इफ़्फ़त अब्बास

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कई सितारे यहाँ टूटते बिखरते हैं

हयात लखनवी

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

न समझे दिल फ़रेब-ए-आरज़ू को

हसरत मोहानी

मोहब्बत एक तरह की निरी समाजत है

हसरत अज़ीमाबादी

वफ़ा के हैं ख़्वान पर निवाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

हसरत अज़ीमाबादी

अज़ीज़ो तुम न कुछ उस को कहो हुआ सो हुआ

हसरत अज़ीमाबादी

निदा-ए-तख़्लीक़

हसन नईम

क़ल्ब-ओ-जाँ में हुस्न की गहराइयाँ रह जाएँगी

हसन नईम

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