कमां Poetry

ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा

दौर आफ़रीदी

बातें करो

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे

ज़ुबैर रिज़वी

शाम होने वाली थी जब वो मुझ से बिछड़ा था ज़िंदगी की राहों में

ज़ुबैर रिज़वी

क्या बताएँ ग़म-ए-फ़ुर्क़त में कहाँ से गुज़रे

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

किस से करूँ मैं अपनी तबाही का अब गिला

यासीन ज़मीर

उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

वज़ीर आग़ा

रह-ए-कहकशाँ से गुज़र गया हमा-ईन-ओ-आँ से गुज़र गया

वक़ार बिजनोरी

वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है

वलीउल्लाह मुहिब

ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है

वलीउल्लाह मुहिब

आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब

वलीउल्लाह मुहिब

ख़ुनुक-जोशी न करते जूँ सबा गर ये बुताँ हम से

वली उज़लत

बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें

वली उज़लत

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना

वली उज़लत

तिरी नज़र का तीर जब जिगर के पार हो गया

वली शम्सी

हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं

वाली आसी

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

कितने ही तीर ख़म-ए-दस्त-ओ-कमाँ में होंगे

तौसीफ़ तबस्सुम

एक टहनी से बर्ग टूटा है

तौक़ीर अब्बास

अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता

तारिक़ नईम

खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस

ताबाँ अब्दुल हई

जुम्बिश अबरू को है लेकिन नहीं आशिक़ पे निगाह

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

आशिक़-ए-हक़ हैं हमीं शिकवा-ए-तक़दीर नहीं

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

कहीं भी ताइर-ए-आवारा हो मगर तय है

सय्यद अमीन अशरफ़

मलाल-ए-ग़ुंचा-ए-तर जाएगा कभी न कभी

सय्यद अमीन अशरफ़

सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं

सय्यद आबिद अली आबिद

रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा

सिराज औरंगाबादी

क़द तिरा सर्व-ए-रवाँ था मुझे मालूम न था

सिराज औरंगाबादी

जिस कूँ मुल्क-ए-बे-ख़ुदी का राज है

सिराज औरंगाबादी

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