नाव Poetry

कुछ ऐसे वस्ल की रातें गुज़ारी है मैं ने

अमित सतपाल तनवर

मुसलमान और हिन्दोस्तान

हिन्दी गोरखपुरी

वो हातिफ़ की ज़बान में कलाम करने लगी

जवाज़ जाफ़री

वारिस

मुबश्शिर अली ज़ैदी

मुझ से पूछो

वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

फूल का खिलना बहुत दुश्वार है

ज़ुहैर कंजाही

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी

ज़िया फ़तेहाबादी

दिल अपना सैद-ए-तमन्ना है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

कश्ती

ज़ीशान साहिल

कल

ज़ीशान साहिल

ईरीना

ज़ीशान साहिल

आख़िरी ख़्वाहिश

ज़ीशान साहिल

आधी ज़िंदगी

ज़ीशान साहिल

चमक रहा है ख़ेमा-ए-रौशन दूर सितारे सा

ज़ेब ग़ौरी

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

गो मिरी हर साँस इक पेगाज़-ए-सरमस्ती रही

ज़ेब ग़ौरी

ख़्वाब-नगर के शहज़ादे ने ऐसे भी निरवान लिया

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है

ज़ाहिदा ज़ैदी

जहाँ में कौन कह सकता है तुम को बेवफ़ा तुम हो

ज़हीर देहलवी

मिला तो मंज़िल-ए-जाँ में उतारने न दिया

ज़फ़र इक़बाल

इंतिबाह

यूसुफ़ तक़ी

हुसूल-ए-रिज़्क़ के अरमाँ निकालते गुज़री

याक़ूब तसव्वुर

चला आँखों से जब कश्ती में वो महबूब जाता है

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

इस तरह से कश्ती भी कोई पार लगे है

वामिक़ जौनपुरी

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