डर Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इक्कीसवीं सदी का इश्क़

मर्यम तस्लीम कियानी

सहमा है आसमान ज़मीं भी उदास है

दाऊद मोहसिन

मुसलमान और हिन्दोस्तान

हिन्दी गोरखपुरी

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है

शौक़ मुरादाबादी

शुआएँ ऐसे मिरे जिस्म से गुज़रती गईं

अली अकबर अब्बास

हवा ही लौ को घटाती वही बढ़ाती है

अमजद इस्लाम अमजद

पेश हर अहद को इक तेग़ का इम्काँ क्यूँ है

अली अकबर अब्बास

ख़्वाहिश

हारिस ख़लीक़

ज़िंदगी और मौत

फ़ज़लुर्रहमान

ख़्वाब

ये मेज़ ये किताब ये दीवार और मैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

झुलसती धूप में मुझ को जला के मारेगा

ज़ुबैर क़ैसर

कलियाँ चटक रही हैं बहारों की गोद में

ज़ोहरा नसीम

कसक

ज़िया जालंधरी

चाक

ज़िया जालंधरी

शम-ए-हक़ शोबदा-ए-हर्फ़ दिखा कर ले जाए

ज़िया जालंधरी

कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह

ज़िया जालंधरी

वो किताब

ज़ेहरा निगाह

डरो उस वक़्त से

ज़ेहरा निगाह

बुलावा

ज़ेहरा निगाह

अकेले होने का ख़ौफ़

ज़ेहरा निगाह

बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं

ज़ेहरा निगाह

शहरी सहूलतें

ज़ीशान साहिल

हिसाब

ज़ीशान साहिल

चिड़ियों का शोर

ज़ीशान साहिल

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