डर Poetry (page 3)

ज़ख़्मों की मुनाजात में पिन्हाँ वो असर था

युसूफ़ जमाल

कुछ लोग जो नख़वत से मुझे घूर रहे हैं

यावर अब्बास

वो जो एक चेहरा दमक रहा है जमाल से

यशब तमन्ना

ऐसा भी नहीं दर्द ने वहशत नहीं की है

यशब तमन्ना

तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-बयाँ का हम ज़बानों में

याक़ूब उस्मानी

मैं चाहूँ भी तो ज़ब्त-ए-गुफ़्तुगू मैं ला नहीं सकता

याक़ूब उस्मानी

करम के इस दौर-ए-इम्तिहाँ से वो दौर-ए-मश्क़-ए-सितम ही अच्छा

याक़ूब उस्मानी

ख़ुदा की मार वो अय्याम-ए-शोर-ओ-शर गुज़रे

यगाना चंगेज़ी

अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया

वज़ीर अली सबा लखनवी

भूत

वज़ीर आग़ा

दिन ढल चुका था और परिंदा सफ़र में था

वज़ीर आग़ा

क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना

वासिफ़ देहलवी

उदास रातों में तेज़ कॉफ़ी की तल्ख़ियों में

वसी शाह

डर मौत का न ख़ौफ़ किसी देवता का था

वसीम मीनाई

न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है

वसीम बरेलवी

कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो

वसीम बरेलवी

जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है

वसीम बरेलवी

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें

वसीम बरेलवी

तिरी नज़र में तिरे मा-सिवा नहीं होगा

वक़ार वासिक़ी

कभी सिसकी कभी आवाज़ा सफ़र जारी है

वक़ार ख़ान

जहाँ पे इल्म की कोई क़द्र और हवाला नहीं

वक़ार ख़ान

बे-मिस्ल-ओ-बे-हिसाब उजालों के बा'द भी

वक़ार ख़ान

जो सोचते रहे वो कर गुज़रना चाहते हैं

वक़ार फ़ातमी

मुदावा

वामिक़ जौनपुरी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

मा'रके में इश्क़ के सर से गुज़रने से न डर

वलीउल्लाह मुहिब

बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस

वलीउल्लाह मुहिब

नंग नहीं मुझ को तड़पने से सँभल जाने का

वली उज़लत

मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ

वली उज़लत

देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का

वली मोहम्मद वली

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