खिड़की Poetry

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

ये सन्नाटा है मैं हूँ चाँदनी में

अमित सतपाल तनवर

आख़िर हम ने तौर पुराना छोड़ दिया

अर्श सिद्दीक़ी

फ़स्ल की जल्वागरी देखता हूँ

ज़ुबैर शिफ़ाई

शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है

ज़ुबैर रिज़वी

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

मेरे कमरे में इक ऐसी खिड़की है

ज़िया मज़कूर

शाम का पहला तारा (2)

ज़ेहरा निगाह

शाम का पहला तारा

ज़ेहरा निगाह

पुल-सिरात

ज़ेहरा निगाह

इंसाफ़

ज़ेहरा निगाह

ये आँसू नहीं

ज़ीशान साहिल

तालिबान

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

मोहब्बत का जन्म-दिन

ज़ीशान साहिल

मेरा ज़ाइक़ा

ज़ीशान साहिल

कश्ती

ज़ीशान साहिल

ईमेल

ज़ीशान साहिल

दहशत-गर्द शायर

ज़ीशान साहिल

सूरज ने इक नज़र मिरे ज़ख़्मों पे डाल के

ज़ेब ग़ौरी

ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे

ज़ेब ग़ौरी

सूरज ने इक नज़र मिरे ज़ख़्मों पे डाल के

ज़ेब ग़ौरी

काएनाती गर्द में बरसात की एक शाम

ज़ाहिद इमरोज़

गाड़ी की खिड़की से देखा शब को उस का शहर

ज़ाहिद फ़ारानी

धूप निकली कभी बादल से ढकी रहती है

ज़फर इमाम

उस की याद और दर्द की सौग़ात मेरे साथ थी

यहया ख़ालिद

तुझे भी याद तो होगा

वज़ीर आग़ा

सारी उम्र गँवा दी हम ने

वज़ीर आग़ा

जब आँख खुली मेरी

वज़ीर आग़ा

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