किनारा Poetry

वो हातिफ़ की ज़बान में कलाम करने लगी

जवाज़ जाफ़री

उस को जाते हुए देखा था पुकारा था कहाँ

ज़िया ज़मीर

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ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

तमन्नाएँ अज़िय्यत का नज़ारा हम न कहते थे

ज़ीशान साजिद

मेरा वजूद उस को गवारा नहीं रहा

ज़ाहिद चौधरी

हर ग़ज़ल हर शेर अपना इस्तिआरा-आश्ना

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

चिलचिलाती धूप ने ग़ुस्सा उतारा हर जगह

ज़फ़र सहबाई

जादा-ए-ज़ीस्त पे बरपा है तमाशा कैसा

यज़दानी जालंधरी

हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं

यासमीन हमीद

ख़ुश-फ़हमियों को ग़ौर का यारा नहीं रहा

याक़ूब उस्मानी

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

बेगानगी में यूँही गुज़ारा करेंगे हम

तलअत इशारत

सुकून-ए-दिल में वो बन के जब इंतिशार उतरा तो मैं ने देखा

ताहिर फ़राज़

जो माल उस ने समेटा था वो भी सारा गया

सय्यद अनवार अहमद

बे-लुत्फ़ है ये सोच कि सौदा नहीं रहा

सय्यद अमीन अशरफ़

इन दिनों तेज़ बहुत तेज़ है धारा मेरा

सुहैल अख़्तर

कब तक भँवर के बीच सहारा मिले मुझे

सुग़रा सदफ़

चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़

सूफ़ी तबस्सुम

ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा

सूफ़ी तबस्सुम

इंसाँ हवस के रोग का मारा है इन दिनों

सोज़ नजीबाबादी

लिया जन्नत में भी दोज़ख़ का सहारा हम ने

सिराज लखनवी

सुना है जब सीं तेरे हुस्न का शोर

सिराज औरंगाबादी

कहाँ है गुल-बदन मोहन पियारा

सिराज औरंगाबादी

रंजिश तिरी हर दम की गवारा न करेंगे

शैख़ अली बख़्श बीमार

जहाँ पे बसना है मुझ को अब वो जहान ईजाद हो रहा है

शहज़ाद रज़ा लम्स

आसमाँ तुझ से किनारा कहीं करना है मुझे

शहज़ाद रज़ा लम्स

हमारे दर्द की जानिब इशारा करती हैं

शहपर रसूल

यार को महरूम-ए-तमाशा किया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

आइना देखूँ मगर क्या देखूँ

शर्मा तासीर

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