किनारे Poetry

उसे समझा-बुझा के हम तो हारे

फ़र्रुख़ जाफ़री

लापता

मुबश्शिर अली ज़ैदी

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

गुल-ओ-गुलज़ार गुहर चाँद सितारे बच्चे

फ़ारूक़ इंजीनियर

प्यार के खट्टे-मीठे नामे वो लिखती है मैं पढ़ता हूँ

बशीर दादा

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

मैं ने अपना वजूद गठड़ी में बाँध लिया

जवाज़ जाफ़री

दिल्ली पे क़ुर्बान

इज़हार मलीहाबादी

पुराने रंग में अश्क-ए-ग़म ताज़ा मिलाता हूँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

असरार बड़ी देर में ये मुझ पे खुला है

ज़ुल्फ़िक़ार अहसन

नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

रात गुज़री न कम सितारे हुए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

हुई आग़ाज़ फूलों की कहानी

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

नया घर

ज़ेहरा निगाह

सफ़ेद ख़रगोश की गेंद

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नया रास्ता

ज़ीशान साहिल

आख़िरी ख़्वाहिश

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

14

ज़ीशान साहिल

झुके हुए पेड़ों के तनों पर छाप है चंचल धारे की

ज़ेब ग़ौरी

इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी

ज़ेब ग़ौरी

ये जो बिफरे हुए धारे लिए फिरता हूँ मैं

ज़करिय़ा शाज़

चाँद की बेबसी को समझूँगी

ज़हरा क़रार

चाँद की बेबसी को समझूँगी

ज़हरा क़रार

मेरा कोई दोस्त नहीं

ज़ाहिद इमरोज़

चोर दरवाज़ा खुला रहता है

ज़ाहिद इमरोज़

क़सम उस बदन की

ज़ाहिद हसन

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