फीका Poetry

किसी की सदा

इब्न-ए-सफ़ी

सुकून

हरबंस मुखिया

दूरी

ज़िया जालंधरी

अधूरी

ज़िया जालंधरी

रौशनियाँ अतराफ़ में 'ज़ेहरा' रौशन थीं

ज़ेहरा निगाह

तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा

ज़ेहरा निगाह

एक तिलिस्मी खेल

ज़ेहरा निगाह

रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था

ज़ेहरा निगाह

सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना

ज़ेब ग़ौरी

रात दमकती है रह रह कर मद्धम सी

ज़ेब ग़ौरी

तिरी चश्म-ए-तरब को देखना पड़ता है पुर-नम भी

ज़हीर काश्मीरी

खाँसती मद्धम सी इक आवाज़ जब से खो गई

यूसुफ़ तक़ी

अगर ख़ू-ए-तहम्मुल हो तो कोई ग़म नहीं होता

वासिफ़ देहलवी

कभी बहुत है कभी ध्यान तेरा कुछ कम है

तनवीर अंजुम

हम-ज़ाद

शाज़ तमकनत

शायद उसे ज़रूरत हो अब पर्दे की

शारिक़ कैफ़ी

रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे

शारिक़ कैफ़ी

ये क्या अंदाज़ हैं दस्त-ए-जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ के

शम्स इटावी

रुकने का अब नाम न ले है राही चलता जाए है

शमीम अनवर

चाहत की लौ को मद्धम कर देता है

शकील जमाली

आइना देखा तो सूरत अपनी पहचानी गई

शाइस्ता मुफ़्ती

तुम आओगे

शाइस्ता हबीब

अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं

शहज़ाद क़मर

बे-ताबी-ए-ग़म-हा-ए-दरूँ कम नहीं होगी

शहज़ाद अहमद

आँसुओं में ज़रा सी हँसी घोल कर

शाहिद मीर

लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे

शाद लखनवी

फूल और सितारा

शब्बीर शाहिद

जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ

शाद आरफ़ी

वक़्त भी अब मिरा मरहम नहीं होने पाता

सरवत ज़ेहरा

वक़्त भी अब मिरा मरहम नहीं होने पाता

सरवत ज़ेहरा

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