पूर्णिमा Poetry

तहरीर

बलराज कोमल

शबाब आ गया उस पर शबाब से पहले

ए जी जोश

दूर तक इक सराब देखा है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

वो सानेहा हुआ था कि बस दिल दहल गए!

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

शामिल न होते हुस्न के जल्वे अगर 'कमाल'

ज़ाहीदा कमाल

वो आफ़्ताब में है और न माहताब में है

ज़ाहिद चौधरी

ये किस हिसाब से की तू ने रौशनी तक़्सीम

वज़ीर आग़ा

थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था

वज़ीर आग़ा

पत्थर नज़र थी वाइ'ज़-ए-ख़ाना-ख़राब की

वसीम ख़ैराबादी

दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी

वलीउल्लाह मुहिब

नायाब है सुकून दिल-ए-बे-क़रार में

वाजिद अली शाह अख़्तर

वो अव्वलीं दर्द की गवाही सजी हुई बज़्म-ए-ख़्वाब जैसे

तौसीफ़ तबस्सुम

एक ख़्वाब

तौक़ीर अहमद

एक आवाज़

तख़्त सिंह

किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

मेरी निगह में यार मैं उस की निगाह में

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

अब्र का माहताब का भी था

सय्यद मुनीर

रंगत उसे पसंद है ऐ नस्तरन सफ़ेद

सय्यद अाग़ा अली महर

किसी के वास्ते जीता है अब न मरता है

सुल्तान अख़्तर

तू आग रखना कि आब रखना

सुभाष पाठक ज़िया

वो जिस के दिल में निहाँ दर्द दो-जहाँ का था

शोला हस्पानवी

वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें

ज़ौक़

रतजगा

शाज़ तमकनत

फ़रेब-ए-नज़र

शमीम करहानी

ज़मीं पर फ़स्ल-ए-गुल आई फ़लक पर माहताब आया

शकील बदायुनी

दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े

शहज़ाद अहमद

बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर

शहज़ाद अहमद

नया खेल

शहरयार

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