मंजिलें Poetry

ऐ लाहौर

जीलानी कामरान

हम जो पहुँचे तो रहगुज़र ही न थी

ज़ेहरा निगाह

ये उदासी ये फैलते साए

ज़ेहरा निगाह

मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है

ज़करिय़ा शाज़

फ़सील-ए-जिस्म गिरा कर बिखर न जाऊँ मैं

ज़ाहिद नवेद

इस दौर-ए-आफ़ियत में ये क्या हो गया हमें

ज़हीर काश्मीरी

रू-ब-रू बुत के दुआ की भूल हो जाए तो फिर

याक़ूब तसव्वुर

ऐसे बढ़े कि मंज़िलें रस्ते में बिछ गईं

वज़ीर आग़ा

बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ

वज़ीर आग़ा

कभी सिसकी कभी आवाज़ा सफ़र जारी है

वक़ार ख़ान

किवाड़ बंद भी है और नीम-वा भी है

वकील अख़्तर

किसी से और तो क्या गुफ़्तुगू करें दिल की

उम्मीद फ़ाज़ली

मिरी मंज़िलें कहीं और हैं मिरा रास्ता कोई और है

ताहिर फ़राज़

शॉर्टकट

सय्यद मुबारक शाह

मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है

सिराज लखनवी

अपना ख़ालिक़ ख़ुद ही था मेरा ख़ुदा कोई न था

शोला हस्पानवी

क़त्अ होती जा रही हैं ज़िंदगी की मंज़िलें

शेरी भोपाली

जो कहता है कि दरिया देख आया

शारिक़ कैफ़ी

पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए

शारिब मौरान्वी

आब ओ गिया से बे-नियाज़ सर्द जबीन-ए-कोह पर

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

तिरे अहल-ए-दर्द के रोज़-ओ-शब इसी कश्मकश में गुज़र गए

शमीम जयपुरी

ये तमाम ग़ुंचा-ओ-गुल मैं हँसूँ तो मुस्कुराएँ

शकील बदायुनी

हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थीं

शहज़ाद अहमद

जान मुक़द्दर में थी जान से प्यारा न था

शहज़ाद अहमद

मंज़र से कभी दिल के वो हटता ही नहीं है

शबनम शकील

औरत

शाद आरफ़ी

हस्ब-ए-फ़रमान-ए-अमीर-ए-क़ाफ़िला चलते रहे

सय्यद नसीर शाह

बिस्तर और बावर्ची

सरवत ज़ेहरा

क़ुर्बतें न बन पाए फ़ासले सिमट कर भी

सरवर अरमान

जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे

सरवर आलम राज़

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