मरहम Poetry

कभी जब्र-ओ-सितम के रू-ब-रू सर ख़म नहीं होता

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी

ज़िया फ़तेहाबादी

तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया

ज़ेहरा निगाह

कहाँ तक काविश-ए-इसबात-ए-पैहम

ज़ाहिदा ज़ैदी

ज़ख़्म का जो मरहम होते हैं

ज़ाहिद कमाल

वक़्त के नाम एक ख़त

ज़ाहिद इमरोज़

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

ज़हीर सिद्दीक़ी

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

ज़हीर सिद्दीक़ी

वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था

यूसुफ़ तक़ी

शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

इक-बटा-दो को करूँ क्यूँ न रक़म दो-बटा-चार

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

देहली

वामिक़ जौनपुरी

देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

ये किस से आज बरहम हो गई है

तिलोकचंद महरूम

हुए हो किस लिए बरहम अज़ीज़म

तसनीम आबिदी

कभी बहुत है कभी ध्यान तेरा कुछ कम है

तनवीर अंजुम

माल-ओ-ज़र की क़द्र क्या ख़ून-ए-जिगर के सामने

तालिब हुसैन तालिब

ग़म-ए-दिल की ज़बाँ अहल-ए-तशद्दुद कम समझते हैं

तालिब चकवाली

मिरा ख़ुर्शीद-रू सब माह-रूयाँ बीच यक्का है

ताबाँ अब्दुल हई

ख़्वाबों की हक़ीक़त भी बता क्यूँ नहीं देते

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

मुझ को दौलत मिली तिरे ग़म की

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

अपने ही टूटे हुए ख़्वाबों को दिल चुनता भी है

सुल्तान सब्र वानी

ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर

सुलतान रशक

कोई दुश्मन कोई हमदम भी नहीं साथ अपने

सुलैमान अरीब

किसी की याद में शमएँ जलाना भूल जाता है

सुहैल सानी

फूल सब के लिए महकते हैं

सोनरूपा विशाल

तिरी ज़ुल्फ़ ज़ुन्नार का तार है

सिराज औरंगाबादी

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