मयस्सर Poetry

हिज्र

अज़ीमुद्दीन अहमद

सहमा है आसमान ज़मीं भी उदास है

दाऊद मोहसिन

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं

जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

फिर घड़ी आ गई अज़िय्यत की

ज़ुबैर अमरोहवी

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है

ज़िया ज़मीर

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया

ज़ेहरा निगाह

जो मेरे बस में है उस से ज़ियादा क्या करना

ज़ीशान साहिल

अधूरी छोड़ के तस्वीर मर गया वो 'ज़ेब'

ज़ेब ग़ौरी

मुराद-ए-शिकवा नहीं लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू के सिवा

ज़ेब ग़ौरी

क़ैस कहता था यही फ़िक्र है दिन-रात मुझे

ज़रीफ़ लखनवी

हिज्र का ये कर्ब सारा बे-असर हो जाएगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ज़मीं पे एड़ी रगड़ के पानी निकालता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

सफ़र कठिन ही सही जान से गुज़रना क्या

ज़फ़र इक़बाल

पाए हुए इस वक़्त को खोना ही बहुत है

ज़फ़र इक़बाल

कुफ़्र से ये जो मुनव्वर मिरी पेशानी है

ज़फ़र इक़बाल

तू ख़ुद भी नहीं और तिरा सानी नहीं मिलता

ज़फ़र हमीदी

उस से मेरा तो कोई दूर का रिश्ता भी नहीं

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

ख़्वाब ता'बीर में बदलता है

यशब तमन्ना

भूरी मिट्टी की तह को हटाएँ

वज़ीर आग़ा

उस बुत ने गुलाबी जो उठा मुँह से लगाई

वलीउल्लाह मुहिब

गिले शिकवे के दफ़्तर आ गए तुम

वजीह सानी

आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ

उम्मीद फ़ाज़ली

हाए इक शख़्स जिसे हम ने भुलाया भी नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

काश इक शब के लिए ख़ुद को मयस्सर हो जाएँ

तौसीफ़ तबस्सुम

मिरी सच्चाई हर सूरत तिरी मुट्ठी से निकलेगी

ताैफ़ीक़ साग़र

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