अक्ष Poetry

बेचैनी

दौर आफ़रीदी

शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है

ज़ुबैर रिज़वी

पलकों पे तैरते हुए महशर तमाम-शुद

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

जज़्बा-ए-बे-कराना

ज़ाहिदा ज़ैदी

कैसा मफ़्तूह सा मंज़र है कई सदियों से

वसी शाह

जमालियात

वामिक़ जौनपुरी

कोई अपने वास्ते महशर उठा कर ले गया

वलीउल्लाह वली

इबहाम दीदा

वहाब दानिश

सुकूत-ए-शब सितारों से हवा जब बात करती है

विश्मा ख़ान विश्मा

हो तिरा इश्क़ मिरी ज़ात का मेहवर जैसे

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

मैं तिरे हिज्र से निकलूँगा तो मर जाऊँगा

तौक़ीर तक़ी

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं

तौक़ीर तक़ी

मेहवर पे भी गर्दिश मिरी मेहवर से अलग हो

तफ़ज़ील अहमद

लहरों में भँवर निकलेंगे मेहवर न मिलेगा

तफ़ज़ील अहमद

मैं कर्ब-ए-बुत-तराशी-ए-आज़र में क़ैद था

सय्यद शकील दस्नवी

यादश-ब-ख़ैर साया-फ़गन घर ही और था

सय्यद मज़हर जमील

दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात

सय्यद आबिद अली आबिद

किसी नादीदा शय की चाह में अक्सर बदलते हैं

शोएब निज़ाम

शिकोह-ए-ज़ात से दुश्मन का लश्कर काँप जाता है

शायान क़ुरैशी

माह-ए-मुनीर

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

एक और मौत

शहरयार

सुन रखा था तजरबा लेकिन ये पहला था मिरा

शहराम सर्मदी

अगर वो हम-सफ़र ठहरें तो हम को डर में रखते हैं

शफ़ीक़ आसिफ़

होंटों पर महसूस हुई है आँखों से मादूम रही है

शाद आरफ़ी

मैं अगर फ़िक्र के शह-पर से अलग हो जाऊँ

सीन शीन आलम

कुछ और अकेले हुए हम घर से निकल कर

सऊद उस्मानी

आहटों से दिमाग़ जलता है

समद अंसारी

मशवरा

सलीम फ़िगार

वो इश्क़ जो हम को लाहिक़ था

साजिदा ज़ैदी

है बाइस-ए-सुकून सुख़न-वर तुम्हारा नाम

सहर महमूद

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