लोकपाल Poetry

जितनी भी तेज़ हो सके रफ़्तार कर के देख

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला

वज़ीर अली सबा लखनवी

ये दाढ़ी मोहतसिब ने दुख़्त-ए-रज़ के फाड़ खाने को

वलीउल्लाह मुहिब

मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का

वलीउल्लाह मुहिब

सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

आता है मोहतसिब पए-ताज़ीर मय-कशो

ताबाँ अब्दुल हई

रोया न हूँ जहाँ में गरेबाँ को अपने फाड़

ताबाँ अब्दुल हई

हिसाब-ए-उम्र करो या हिसाब-ए-जाम करो

सुलैमान अरीब

न मोहतसिब की ख़ुशामद न मय-कदे का तवाफ़

सिराज लखनवी

ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ

सिराज लखनवी

उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है

ज़ौक़

मौसम-ए-गुल साथ ले कर बर्क़ ओ दाम आ ही गया

शकील बदायुनी

चला जा मोहतसिब मस्जिद में 'हातिम' से न बहसा कर

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न मोहतसिब से ये मुझ को ग़रज़ न मस्त से काम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा

शाह नसीर

कब दिल शिकस्त-गाँ से कर अर्ज़-ए-हाल आया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

हम सोज़-ए-दिल बयाँ करें तुम से कहाँ तलक

सरस्वती सरन कैफ़

ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला

साइल देहलवी

अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी

साइल देहलवी

ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की

रियाज़ ख़ैराबादी

नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग

रियाज़ ख़ैराबादी

हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट

रियाज़ ख़ैराबादी

क्या कहूँ क्या मिला है क्या न मिला

रविश सिद्दीक़ी

क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में

रौनक़ टोंकवी

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

उखड़ी न एक शाख़ भी नख़्ल-ए-जदीद की

इनाम दुर्रानी

हम मय-कशों को डर नहीं मरने का मोहतसिब

इमाम बख़्श नासिख़

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