विकास Poetry

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

तीरगी

ज़िया जालंधरी

शहर-ए-आशोब

ज़िया जालंधरी

हम

ज़िया जालंधरी

चाक

ज़िया जालंधरी

अधूरी

ज़िया जालंधरी

न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है

ज़ेब ग़ौरी

मुराद-ए-शिकवा नहीं लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू के सिवा

ज़ेब ग़ौरी

इक बे-पनाह रात का तन्हा जवाब था

यासमीन हमीद

हवा-ए-सुब्ह-ए-नुमू दुश्मन-ए-चमन कैसे

याक़ूब राही

उस बुत ने गुलाबी जो उठा मुँह से लगाई

वलीउल्लाह मुहिब

मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए

तौक़ीर तक़ी

एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था

तसनीम आबिदी

शौक़ का तक़ाज़ा है शरह-ए-आरज़ू कीजे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

मंज़िलों से बेगाना आज भी सफ़र मेरा

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

जल्वा पाबंद-ए-नज़र भी है नज़र-साज़ भी है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

यादश-ब-ख़ैर साया-फ़गन घर ही और था

सय्यद मज़हर जमील

सुख़न की शब लहू होती रहेगी

सय्यद अमीन अशरफ़

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के

सुरूर बाराबंकवी

दिलों में फ़र्क़ है तो गुफ़्तुगू से कुछ नहीं होगा

शुजा ख़ावर

नज़र बहार न देखे तो बे-क़रार न हो

शिव दयाल सहाब

यही सफ़र की तमन्ना यही थकन की पुकार

शाज़ तमकनत

गर्दिश में ज़हर भी है मुसलसल लहू के साथ

शकील जाज़िब

ऐसा हो कि ना-मौऊद हो

शहराम सर्मदी

ख़ला सा ठहरा हुआ है ये चार-सू कैसा

शहराम सर्मदी

हवाएँ चाँदनी में काँपती हैं

शाहिदा तबस्सुम

इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

शाहिद कमाल

हर्फ़-ए-कुन शह-ए-रग-ए-हू में गुम है

शाहिद कमाल

धूप के ज़र्द जज़ीरों में नुमू ज़िंदा है

शाहिद कमाल

मिरे बनने से क्या क्या बन रहा था

शाहीन अब्बास

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