पर्दाफाश Poetry

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

क्या मैं जुगनू को आफ़्ताब करूँ

तरुणा मिश्रा

इश्क़ से इज्तिनाब कर लेना

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

ज़िंदगी और मौत

फ़ज़लुर्रहमान

दूर तक इक सराब देखा है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

सुब्ह से शाम तक

ज़िया जालंधरी

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का

ज़ेबा

वो मेरे सामने ख़ंजर-ब-कफ़ खड़ा था 'ज़ेब'

ज़ेब ग़ौरी

खुली थी आँख समुंदर की मौज-ए-ख़्वाब था वो

ज़ेब ग़ौरी

राहतों के धोके में इज़्तिराब ढूँडे हैं

ज़मीर अतरौलवी

ज़िंदगी यूँ भी कभी मुझ को सज़ा देती है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

अच्छा हुआ कि दम शब-ए-हिज्राँ निकल गया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

तपिश से फिर नग़्मा-ए-जुनूँ की सुरूद-ओ-चंग-ओ-रबाब टूटे

ज़ाहिदा ज़ैदी

कई दिलों में पड़ी इस से शोर-ओ-शर की तरह

ज़ाहिद फ़ारानी

वो आफ़्ताब में है और न माहताब में है

ज़ाहिद चौधरी

था उस का जैसा अमल वो ही यार मैं भी करूँ

याक़ूब आरिफ़

वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला

यगाना चंगेज़ी

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

दीदार से पहले ही क्या हाल हुआ दिल का

वासिफ़ देहलवी

खुलने ही लगे उन पर असरार-ए-शबाब आख़िर

वासिफ़ देहलवी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न

वली मोहम्मद वली

जो नहीं किया अब तक बे-हिसाब करना है

वाजिद क़ुरैशी

रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आरियों की पहली आमद हिन्दोस्तान में

वहीदुद्दीन सलीम

ख़ुद सवाल-ओ-जवाब करते रहो

उर्मिलामाधव

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