भाले Poetry

मैं ने अपना वजूद गठड़ी में बाँध लिया

जवाज़ जाफ़री

फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को

दर्द की शाख़ पे इक ताज़ा समर आ गया है

ज़िया ज़मीर

मसअलों की भीड़ में इंसाँ को तन्हा कर दिया

याक़ूब यावर

न चारागर न मसीहा न राहबर था मैं

याक़ूब आरिफ़

है क़ानून-ए-फ़ितरत कोई क्या करेगा

वलीउल्लाह वली

बंदे हैं तेरी छब के मह से जमाल वाले

वली उज़लत

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

भूली हुई राहों का सफ़र कैसा लगेगा

तारिक़ बट

तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए

तहसीन फ़िराक़ी

एक जग बीत गया झूम के आए बादल

सय्यद अहमद शमीम

बराए नाम सही दिन के हाथ पीले हैं

सुल्तान अख़्तर

बराए नाम सही दिन के हाथ पीले हैं

सुल्तान अख़्तर

उस ने सोचा भी नहीं था कभी ऐसा होगा

सिद्दीक़ मुजीबी

अब क़ैस है कोई न कोई आबला-पा है

शमीम हनफ़ी

इस घर में मिरे साथ बसर कर के तो देखो

शकील शम्सी

बहुत घुटन है यहाँ पर कोई बचा ले मुझे

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

ज़मीं अपने लहू से आश्ना होने ही वाली है

शहज़ाद अहमद

हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे

शहज़ाद अहमद

कुछ यक़ीं सा गुमान सा कुछ है

शाहिद कमाल

यूँ तिरी चाप से तहरीक-ए-सफ़र टूटती है

सलीम सिद्दीक़ी

अधूरी नस्ल का पूरा सच

सईद अहमद

ये उम्र गुज़री है इतने सितम उठाने में

राशिद तराज़

मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है

रशीदुज़्ज़फ़र

सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है

रशीद क़ैसरानी

सरमा था मगर फिर भी वो दिन कितने बड़े थे

राम रियाज़

आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे

राम रियाज़

ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है

रईस अमरोहवी

ज़मीं मदार से अपने अगर निकल जाए

इक़बाल नवेद

काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए

इमदाद निज़ामी

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