िशाक Poetry

तेरे रहने को मुनासिब था कि छप्पर होता

ज़रीफ़ लखनवी

सज दिया हैरत-ए-उश्शाक़ ने इस बुत का मकाँ

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल

वज़ीर अली सबा लखनवी

ख़याल दिल को है उस गुल से आश्नाई का

वलीउल्लाह सरहिंदी इशतियाक़

पहले सफ़-ए-उश्शाक़ में मेरा ही लहू चाट

वलीउल्लाह मुहिब

नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त

वलीउल्लाह मुहिब

किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर

वलीउल्लाह मुहिब

हुए हम जब से पैदा अपने दीवाने हुए होते

वली उज़लत

आज दिल बे-क़रार है मेरा

वली उज़लत

दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन

वली मोहम्मद वली

सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो

वली मोहम्मद वली

मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के

वली मोहम्मद वली

जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ

वली मोहम्मद वली

हम जब्र-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ नहीं होते

तालीफ़ हैदर

बाग़ में फूलों को रौंद आई सवारी आप की

तअशशुक़ लखनवी

मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

इंक़लाब

सय्यद तसलीम हैदर क़मर

रंगून का मुशाएरा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

शगुफ़्ता हो के बैठे थे वो अपने बे-क़रारों में

सय्यद फ़रज़नद अहमद सफ़ीर

शौक़-ए-वारफ़्ता को मलहूज़-ए-अदब भी होगा

सय्यद अमीन अशरफ़

हक़ में उश्शाक़ के क़यामत है

सिराज औरंगाबादी

आ शिताबी सीं वगर्ना मज्लिस-ए-उश्शाक़ में

सिराज औरंगाबादी

यक निगह सें लिया है वो गुलफ़ाम

सिराज औरंगाबादी

मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

सिराज औरंगाबादी

हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद

सिराज औरंगाबादी

ग़म-ए-आहिस्ता-रौ याँ रफ़्ता रफ़्ता

सिराज औरंगाबादी

कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे

ज़ौक़

जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर

ज़ौक़

हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से

ज़ौक़

किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने

शौक़ बहराइची

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