पारा पारा Poetry

तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा

ज़ेहरा निगाह

अभी तो करना पड़ेगा सफ़र दोबारा मुझे

ज़फ़र इक़बाल

जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो

वलीउल्लाह मुहिब

दर-ओ-बस्त-ए-अनासिर पारा पारा होने वाला है

तारिक़ नईम

दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए

सिद्दीक़ मुजीबी

दुनिया से दुनिया में रह कर कैसे किनारा कर रक्खा है

शोएब निज़ाम

ख़िरद के जुमला दसातीर से मुकरते हुए

सीमाब ज़फ़र

एक किताब सिरहाने रख दी एक चराग़ सितारा किया

सऊद उस्मानी

चाँद निकले न कहीं यार पुराने निकले

सरवर नेपाली

सफ़ीना मौज-ए-बला के लिए इशारा था

सरफ़राज़ दानिश

नए जहानों का इक इस्तिआरा कर के लाओ

सालिम सलीम

ऐसा क्या अंधेर मचा है मेरे ज़ख़्म नहीं भरते

साइमा असमा

कुछ बे-नाम तअल्लुक़ जिन को नाम अच्छा सा देने में

साइमा असमा

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

लिबास-ए-यार को मैं पारा-पारा क्या करता

हैदर अली आतिश

आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह

हबीब जालिब

मालूम करो

फर्रुख यार

अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना

फ़रहत एहसास

सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी

अज़रा परवीन

हयूला

अज़ीज़ तमन्नाई

कोई इशारा कोई इस्तिआ'रा क्यूँकर हो

असलम इमादी

बजा कि कश्ती है पारा पारा थपेड़े तूफ़ाँ के खा रहा हूँ

आरिफ़ अब्दुल मतीन

खुला है तेरे बदन का भी इस्तिआरा कुछ

आमिर नज़र

मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना

अल्लामा इक़बाल

ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं

अल्लामा इक़बाल

मिरे अज़ीज़ो, मिरे रफ़ीक़ो

अली सरदार जाफ़री

जो रेज़ा रेज़ा नहीं दिल उसे नहीं कहते

अहमद ज़फ़र

फ़लक पे चाँद नहीं कोई अब्र-पारा नहीं

अहमद ज़फ़र

नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी

अहमद शहरयार

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