पर्दा Poetry

चले ही जाएगी क्या दर्द की कटारी भला

अनवर अंजुम

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

आख़िरी आदमी

फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी

आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो

ज़िया जालंधरी

मिरे जुनूँ में मिरी वफ़ा में ख़ुलूस की जब कमी मिलेगी

ज़िया फ़तेहाबादी

शाम का पहला तारा (2)

ज़ेहरा निगाह

शाम का पहला तारा

ज़ेहरा निगाह

एक तिलिस्मी खेल

ज़ेहरा निगाह

अब तक शरीक-ए-महफ़िल-ए-अग़्यार कौन है

ज़ेहरा निगाह

अद्ल का फ़ुक़्दान

ज़ेहरा अलवी

वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

मैं किनारों को रुलाने लगा हूँ

ज़ाहिद शम्सी

चमन में सैर-ए-गुल को जब कभी वो मह-जबीं निकले

ज़ाहिद चौधरी

हर रोज़ ही इमरोज़ को फ़र्दा न करोगे

ज़हीर काश्मीरी

उन को हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़ सुना कर उट्ठे

ज़हीर देहलवी

तल्ख़ शिकवे लब-ए-शीरीं से मज़ा देते हैं

ज़हीर देहलवी

बिजली गिरी है कल किसी उजड़े मकान पर

ज़फ़र इक़बाल

अपने दिल-ए-मुज़्तर को बेताब ही रहने दो

ज़फ़र हमीदी

ढूँढ हम उन को परेशान बने बैठे हैं

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

बंदे का पर्दा शान-ए-इलाही छुपी हुई

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

शिर्क का पर्दा उठाया यार ने

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

ढूँढ हम उन को परेशान बने बैठे हैं

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

अजब भूल ओ हैरत जो मख़्लूक़ को है

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

आशिक़ी के आश्कारे हो चुके

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

नफ़्स नमरूद है क्या होना है

वज़ीर अली सबा लखनवी

धूप के साथ गया साथ निभाने वाला

वज़ीर आग़ा

बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया

वज़ीर आग़ा

वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे

वासिफ़ देहलवी

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