परेशां Poetry

बच्चों का जुलूस

बलराज कोमल

देखते ही धड़कनें सारी परेशाँ हो गईं

एहतिमाम सादिक़

पेश हर अहद को इक तेग़ का इम्काँ क्यूँ है

अली अकबर अब्बास

दिसम्बर की आवाज़

बलराज कोमल

इस दिल से मिरे इश्क़ के अरमाँ को निकालो

इस चश्म-ए-सियह-मस्त पे गेसू हैं परेशाँ

ज़ेहन परेशाँ हो जाता है और भी कुछ तन्हाई में

ज़ुबैर अमरोहवी

ताबा कै

ज़िया जालंधरी

नज़र नज़र से मिलाना कोई मज़ाक़ नहीं

ज़िया फ़तेहाबादी

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

तिरा ख़याल फ़रोज़ाँ है देखिए क्या हो

ज़ेहरा निगाह

गो मिरी हर साँस इक पेगाज़-ए-सरमस्ती रही

ज़ेब ग़ौरी

रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं

ज़की काकोरवी

क़यामत का कोई हंगाम उभरे

ज़काउद्दीन शायाँ

ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

फ़िराक़-ए-यार के लम्हे गुज़र ही जाएँगे

ज़हीर काश्मीरी

ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

बातों से सिवा होती है कुछ वहशत-ए-दिल और

यूसुफ़ ज़फ़र

तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया

यूसुफ़ ज़फ़र

ऐ बे-ख़बरी जी का ये क्या हाल है कल से

यूसुफ़ ज़फ़र

दिल में जब कभी तेरी याद सो गई होगी

यूसुफ़ तक़ी

सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम

यज़दानी जालंधरी

चाह थी मेहर थी मोहब्बत थी

यशब तमन्ना

आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर

यगाना चंगेज़ी

हम रिंद-ए-परेशाँ हैं माह-ए-रमज़ाँ है

वज़ीर अली सबा लखनवी

अब तो साहब की हुई ख़ातिर जम्अ'

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

वज़ीर अली सबा लखनवी

दाग़-ए-जुनूँ दिमाग़-ए-परेशाँ में रह गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

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