क़ैस Poetry

ख़ुद-सताई से न हम बाज़ अना से आए

आज़ाद हुसैन आज़ाद

क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर

ज़ेबा

तेरे रहने को मुनासिब था कि छप्पर होता

ज़रीफ़ लखनवी

मजनूँ का जो ऐ लैला जूता न फटा होता

ज़रीफ़ लखनवी

करेंगे सब ये दा'वा नक़्द-ए-दिल जो हार बैठे हैं

ज़रीफ़ लखनवी

ख़ाक सहराओं की पलकों पे सजा ली हम ने

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

साक़िया मर के उठेंगे तिरे मय-ख़ाने से

ज़हीर देहलवी

आप से आप अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा

यगाना चंगेज़ी

दाग़-ए-जुनूँ दिमाग़-ए-परेशाँ में रह गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

इज़्ज़त उन्हें मिली वही आख़िर बड़े रहे

वासिफ़ देहलवी

क़तरे गिरे जो कुछ अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के

वसीम ख़ैराबादी

मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो

वलीउल्लाह मुहिब

लाला-रू तुम ग़ैर के पाले पड़े

वलीउल्लाह मुहिब

बुलबुल वो गुल है ख़्वाब में तू गा के मत जगा

वलीउल्लाह मुहिब

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

तिलोकचंद महरूम

कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी

तिलोकचंद महरूम

होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम

तिलोकचंद महरूम

हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया

तिलोकचंद महरूम

बाइस-ए-इम्बिसात हो आमद-ए-नौ-बहार क्या

तिलोकचंद महरूम

सुर्ख़ फंदे सुनहरी मालाएँ

तनवीर मोनिस

सहरा से आने वाली हवाओं में रेत है

तहज़ीब हाफ़ी

तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए

तहसीन फ़िराक़ी

आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ

ताबाँ अब्दुल हई

ता-सहर की है फ़ुग़ाँ जान के ग़ाफ़िल मुझ को

तअशशुक़ लखनवी

वो जब आप से अपना पर्दा करें

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

ईद की ख़रीदारी

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

श्याम सुंदर लाल बर्क़

निकलने वाले न थे ज़िंदगी के खेल से हम

शोज़ेब काशिर

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