करबतें Poetry

हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था

आशू मिश्रा

मिलन मौसमों की सज़ा चाहता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

सफ़र पे आज वही कश्तियाँ निकलती हैं

वसीम बरेलवी

रहगुज़र हो या मुसाफ़िर नींद जिस को आए है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

संग-ज़नों के वास्ते फिर नए रास्तों में है

शाहिदा तबस्सुम

अक़्लीम-ए-दिल पे इश्क़ की फ़रमाँ-रवाइयाँ

शाद बिलगवी

मिरे सफ़र की हदें ख़त्म अब कहाँ होंगी

सज्जाद बाक़र रिज़वी

विसाल-ओ-हिज्र से वाबस्ता तोहमतें भी गईं

सहर अंसारी

ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे

रोहित सोनी ‘ताबिश’

हम फ़लक के आदमी थे साकिनान-ए-क़र्या-ए-महताब थे

रियाज़ मजीद

न फ़ासले कोई रखना न क़ुर्बतें रखना

राज़ी अख्तर शौक़

अगरचे मैं ने लिखीं उस को अर्ज़ियाँ भी बहुत

रशीद उस्मानी

हिम्मत-ए-आली का इतना तो ज़ियाँ होना ही था

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

''जब तर्सील बटन तक पहुँची''

हनीफ़ तरीन

ये अब के कैसी मुश्किल हो गई है

हामिद कशमीरी

मिज़ाज अलग सही हम दोनों क्यूँ अलग हों कि हैं

फ़ुज़ैल जाफ़री

क़दम क़दम पे हैं बिखरी हक़ीक़तें क्या क्या

फ़ुज़ैल जाफ़री

हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न अब रक़ीब न नासेह न ग़म-गुसार कोई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत

बाक़ी अहमदपुरी

न फ़ासले कोई निकले न क़ुर्बतें निकलीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

फ़सील-ए-जिस्म पे शब-ख़ूँ शरारतें तेरी

अंजुम इरफ़ानी

तअल्लुक़ात में गहराइयाँ तो अच्छी हैं

ऐतबार साजिद

ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं

ऐतबार साजिद

मिरी रूह में जो उतर सकें वो मोहब्बतें मुझे चाहिएँ

ऐतबार साजिद

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को

अहमद फ़राज़

उसे मैं ने नहीं देखा

अब्बास ताबिश

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