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ज़मीन मेरी रहेगी न आइना मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दिल का ग़म से ग़म का नम से राब्ता बनता गया

ज़ुबैर फ़ारूक़

कोई भी रस्ता बहुत सोच कर चुनूँगा मैं

ज़िया मज़कूर

सफ़र ख़ुद-रफ़्तगी का भी अजब अंदाज़ था

ज़ेहरा निगाह

मुद्दत हुई न मुझ से मिरा राब्ता हुआ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

फ़सील-ए-जिस्म गिरा कर बिखर न जाऊँ मैं

ज़ाहिद नवेद

बदला ये लिया हसरत-ए-इज़हार से हम ने

ज़फ़र इक़बाल

सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम

यज़दानी जालंधरी

ऐ नसीम-ए-सहरी हम तो हवा होते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया

उमैर नजमी

आइने के रू-ब-रू इक आइना रखता हूँ मैं

तौसीफ ताबिश

ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था

ताहिरा जबीन तारा

रहबर मिला न हम को कोई रहनुमा मिला

सिद्दीक़ उमर

कहाँ कहाँ है ख़ुदा जाने राब्ता दिल का

शुजा ख़ावर

गो तही-दामन हूँ लेकिन ग़म नहीं

शमीम जयपुरी

ज़िंदगी और मौत का यूँ राब्ता रह जाएगा

शकील सरोश

ये जल्वा-गाह-ए-नाज़ तमाशाइयों से है

शकेब जलाली

ब-राह-ए-रास्त नहीं फिर भी राब्ता सा है

शहराम सर्मदी

अक़्ल-ओ-दिल को मिला-जुला रखिए

शाहजहाँ बानो याद

वो क्यूँ आया

शाहिद मलिक

उस ने मुझ से तो कुछ कहा ही नहीं

शाहबाज़ रिज़्वी

बचा था एक जो वो राब्ता भी टूट गया

शफ़ीक़ सलीमी

ज़ौक़-ए-नज़र को इज़्न-ए-नज़ारा न मिल सका

शबनम शकील

अब मुझ को क्या ख़बर वो यहाँ है भी या नहीं

शबनम शकील

जिस को लगता है गुम-शुदा हूँ मैं

सीमा शर्मा सरहद

ख़राब हो गया जब मेरे जिस्म का काग़ज़

संजय मिश्रा शौक़

मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने

सलीम कौसर

रक्खे हर इक क़दम पे जो मुश्किल की आगही

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा

सादुल्लाह शाह

तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा

सादुल्लाह शाह

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