फैलोशिप Poetry

सूरज की पहली किरन

अमजद इस्लाम अमजद

नज़्म

अख़्तर हुसैन जाफ़री

इन लबों से अब हमारे लफ़्ज़ रुख़्सत चाहते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

ज़िंदगी जिन की रिफ़ाक़त पे बहुत नाज़ाँ थी

ज़ुबैर रिज़वी

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

फिर दिल को रोज़ ओ शब की वही ईद चाहिए

ज़ुबैर रिज़वी

दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं

ज़ुबैर रिज़वी

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

शाम का पहला तारा (2)

ज़ेहरा निगाह

नया घर

ज़ेहरा निगाह

आँगन

ज़ेहरा निगाह

रात का हुस्न भला कब वो समझता होगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

क्यूँ आईने में देखा तू ने जमाल अपना

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता

ज़फ़र इक़बाल

हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने

वहीद अख़्तर

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता

तारिक़ नईम

ये चार दिन की रिफ़ाक़त भी कम नहीं ऐ दोस्त

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ग़म-हा-ए-रोज़गार से फ़ुर्सत नहीं मुझे

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

ये कैसे ख़ौफ़ हमें आज फिर सताने लगे

सय्यद अनवार अहमद

तुझ को ही सोचता रहूँ फ़ुर्सत नहीं रही

सय्यद अनवार अहमद

राहत के वास्ते न रिफ़ाक़त के वास्ते

सय्यद अनवार अहमद

यही नहीं कि मिरा दिल ही मेरे बस में न था

सुरूर बाराबंकवी

ये हाथ

सुलैमान अरीब

तुम्हारी क़ैद-ए-वफ़ा से जो छूट जाऊँगा

सुलैमान अरीब

आलम के दोस्तों में मुरव्वत नहीं रही

सिराज औरंगाबादी

सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

श्याम सुंदर लाल बर्क़

निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई

शुजा ख़ावर

कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे

ज़ौक़

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