रफ़्तगाँ Poetry

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

ज़िया जालंधरी

उम्मीद-ए-सुब्ह-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ से खींचते हैं

ज़फ़र अज्मी

इक ख़ुशी के लिए हैं कितने ग़म

यज़दानी जालंधरी

ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ

वलीउल्लाह मुहिब

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे

वाजिद अली शाह अख़्तर

वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ

तिलोकचंद महरूम

दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी

तिलोकचंद महरूम

इस पार जहान-ए-रफ़्तगाँ है

तौसीफ़ तबस्सुम

किसी ने पूछा जो उम्र-ए-रवाँ के बारे में

तसनीम आबिदी

न पहुँचा साथ यारान-ए-सफ़र की ना-तवानी से

तालिब अली खान ऐशी

दर्द-ए-दिल को दास्ताँ-दर-दास्ताँ होने तो दो

तल्हा रिज़वी बारक़

बुझ रही है आँख ये जिस्म है जुमूद में

ताहिर अदीम

रंगून का मुशाएरा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

दिल से अब तो नक़्श-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ भी मिट गया

सिराज मुनीर

वो जिस के दिल में निहाँ दर्द दो-जहाँ का था

शोला हस्पानवी

तअल्लुक़ात चटख़्ते हैं टूट जाते हैं

शिफ़ा कजगावन्वी

दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया

शहज़ाद अहमद

ऐसा हो कि ना-मौऊद हो

शहराम सर्मदी

मैं अपने हिस्से की तन्हाई महफ़िल से निकालूँगा

शाहिद ज़की

हवा की डोर में टूटे हुए तारे पिरोती है

शाहिद कमाल

जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल

शाह नसीर

ये क्या कि मेरे यक़ीं में ज़रा गुमाँ भी है

शफ़क़ सुपुरी

फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ

मोहम्मद रफ़ी सौदा

कभी मिली है जो फ़ुर्सत तो ये हिसाब किया

सलीम शुजाअ अंसारी

रौशन सुकूत सब उसी शो'ला-बयाँ से है

सलीम शाहिद

जिधर हो ज़िंदगी मुश्किल उधर नहीं आते

साबिर ज़फ़र

न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते

रशीद लखनवी

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