कारण Poetry (page 9)

निशान क़ाफ़ला-दर-क़ाफ़ला रहेगा मिरा

रियाज़ मजीद

नज़्ज़ारा-ए-जमाल ने सोने नहीं दिया

रेहाना रूही

मैं ही नहीं हूँ बरहम उस ज़ुल्फ़-ए-कज-अदा से

रज़ा अज़ीमाबादी

हमारी जीत यही थी कि ख़ुद से हार आए

रौनक़ रज़ा

दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ

रऊफ़ ख़ैर

ख़्वाब ही में रुख़-ए-पुर-नूर दिखाए कोई

रतन पंडोरवी

न जाने कब बसर हुए न जाने कब गुज़र गए

रशक खलीली

दिल जिस से काँपता है वो साअत भी आएगी

राशिद मुफ़्ती

कहते हो मुझे बे-अदब ख़ैर मैं बे-अदब सही

रशीद रामपुरी

उस से कहना कि कभी आ के मिले

रसा चुग़ताई

कुछ न कुछ सोचते रहा कीजे

रसा चुग़ताई

दिल ने अपनी ज़बाँ का पास किया

रसा चुग़ताई

ज़रा ज़रा सी बात पर वो मुझ से बद-गुमाँ रहे

रमेश कँवल

गर्दिश-ए-जाम भी है रक़्स भी है साज़ भी है

राम कृष्ण मुज़्तर

वक़्त-ए-रुख़्सत वो आँसू बहाने लगे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

ये ज़रा सा कुछ और एक-दम बे-हिसाब सा कुछ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न हरीफ़ाना मिरे सामने आ मैं क्या हूँ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

यूँ देखिए तो आँधी में बस इक शजर गया

राजेश रेड्डी

दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं

राजेन्द्र नाथ रहबर

फ़स्ल-ए-गुल में जो कोई शाख़-ए-सनोबर तोड़े

रजब अली बेग सुरूर

नतशे ने कहा

रईस फ़रोग़

कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए

रईस अमरोहवी

दिल उन की याद से जो बहलता चला गया

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है

राही फ़िदाई

तमाम दिन मुझे सूरज के साथ चलना था

इक़बाल उमर

इसी सबब से तो हम लोग पेश-ओ-पस में हैं

इक़बाल उमर

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

तुम मुझे भी काँच की पोशाक पहनाने लगे

इक़बाल साजिद

संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं

इक़बाल साजिद

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

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