सलीके Poetry

देख कर वहशत निगाहों की ज़बाँ बेचैन है

गौतम राजऋषि

सर्द आहों ने मिरे ज़ख़्मों को आबाद किया

बड़े सलीक़े से तोड़ा मिरा यक़ीन उस ने

ज़िया ज़मीर

उरूज उस के लिए था ज़वाल मेरे लिए

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हाइल दिलों की राह में कुछ तो अना भी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

भले ही आँख मिरी सारी रात जागेगी

ज़फर इमाम

वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से

वसीम बरेलवी

और सब कुछ बहाल रक्खा है

विनीत आश्ना

सरापा

उरूज जाफ़री

जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया

उम्मीद फ़ाज़ली

बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर

तसनीम आबिदी

इस सलीक़े से मुझे क़त्ल किया है उस ने

तारिक़ क़मर

उस ने इक बार भी पूछा नहीं कैसा हूँ मैं

तारिक़ क़मर

बहाऊँगा न मैं आँसू न मुस्कराउँगा

तैमूर हसन

मिरी सहबा-परस्ती मोरीद-ए-इल्ज़ाम है साक़ी

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ख़्वाबों की हक़ीक़त भी बता क्यूँ नहीं देते

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

मुशाएरा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

चंद तिनकों की सलीक़े से अगर तरतीब हो

सिराज लखनवी

ईमाँ की नुमाइश है सज्दे हैं कि अफ़्साने

सिराज लखनवी

फ़ज़ा होती ग़ुबार-आलूदा सूरज डूबता होता

शहराम सर्मदी

बस सलीक़े से ज़रा बर्बाद होना है तुम्हें

शहराम सर्मदी

चाँद ख़ुद को देख कर शरमाएगा

सीमा शर्मा मेरठी

प्यार का तोहफ़ा

साहिर लुधियानवी

इक न इक रोज़ रिफ़ाक़त में बदल जाएगी

सदा अम्बालवी

रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ

सदा अम्बालवी

लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला

सदा अम्बालवी

हमेशा ख़ून-ए-दिल रोया हूँ मैं लेकिन सलीक़े से

साइल देहलवी

याद आते हो किस सलीक़े से

रूही कंजाही

दिल में झाँका तो बहुत ज़ख़्म पुराने निकले

रज़ा अमरोही

कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ

रविश सिद्दीक़ी

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