छाया Poetry

दूसरा जन्म

बलराज कोमल

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

नफ़रतों की नई दीवार उठाते हुए लोग

एहतिमाम सादिक़

वो निशाना भी ख़ता जाता तो बेहतर होता

अब्दुल्लाह कमाल

उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना

ज़ुबैर शिफ़ाई

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

रौशनी का ग़ुलाम

एहतिशाम अख्तर

मैं ने अपना वजूद गठड़ी में बाँध लिया

जवाज़ जाफ़री

हम-ज़ाद

फ़ैसल हाश्मी

बे-साया पेड़

काशिफ़ रफ़ीक़

टीपू-सुल्तान

इज्तिबा रिज़वी

ज़मीन सिमट कर मेरे तलवे से आ लगी

जवाज़ जाफ़री

बादशाह तेरी दहलीज़ का दरबान है

जवाज़ जाफ़री

मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया

न मेरा नाम मेरा है

ज़ेर-ए-बाम गुम्बद-ए-ख़ज़रा अज़ाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

रहरव-ए-राह-ए-ख़राबात-ए-चमन

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मिरी ख़ाक में विला का न कोई शरार होता

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

तब्दीली

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

दोनों हम-पेशा थे दोनों ही में याराना था

ज़ुबैर रिज़वी

जाँ का दुश्मन है मगर जान से प्यारा भी है

ज़िया ज़मीर

हँसते हँसते भी सोगवार हैं हम

ज़िया ज़मीर

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

शहर-ए-आशोब

ज़िया जालंधरी

दूरी

ज़िया जालंधरी

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

इश्क़ ने कर दिया क्या क्या सुख़न-आरा तिरे नाम

ज़िया फ़ारूक़ी

रास्ते

ज़ेहरा निगाह

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