शहर Poetry

उसे समझा-बुझा के हम तो हारे

फ़र्रुख़ जाफ़री

अब शहर में कहाँ रहे वो बा-वक़ार लोग

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

तहरीर

बलराज कोमल

ख़ुद-सताई से न हम बाज़ अना से आए

आज़ाद हुसैन आज़ाद

सहमा है आसमान ज़मीं भी उदास है

दाऊद मोहसिन

मैं लौह-ए-अर्ज़ पर नाज़िल हुआ सहीफ़ा हूँ

अली अकबर अब्बास

देखते ही धड़कनें सारी परेशाँ हो गईं

एहतिमाम सादिक़

रंग के गहरे थे लेकिन दूर से अच्छे लगे

आज़ाद हुसैन आज़ाद

कितने में बनती है मोहर ऐसी

अहमद जावेद

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

सलाम लोगो

हबीब जालिब

हक़ीक़त है कि नन्हा सा दिया हूँ

वलीउल्लाह वली

जब से पड़ी है उन से मुलाक़ात की तरह

अनवर अंजुम

गुंग हैं सारी ज़मीनें आसमाँ हैरत-ज़दा

आज़ाद हुसैन आज़ाद

किस को होगा तिरे आने का पता मेरे बा'द

महमूद शाम

सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में

अब्दुल्लाह कमाल

था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

झाँकते लोग खुले दरवाज़े

महमूद शाम

नज़र को क़ुर्ब-ए-शनासाई बाँटने वाले

हनीफ़ राही

यहाँ-वहाँ से इधर-उधर से न जाने कैसे कहाँ से निकले

आफ़्ताब शकील

अब तक तो यही पता नहीं है

बिमल कृष्ण अश्क

हवा ही लौ को घटाती वही बढ़ाती है

अमजद इस्लाम अमजद

जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था

रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं

अर्श सिद्दीक़ी

यूँ पाबंद-ए-सलासिल हो कर कौन फिरे बाज़ारों में

असरार ज़ैदी

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

पेश हर अहद को इक तेग़ का इम्काँ क्यूँ है

अली अकबर अब्बास

ख़ुश-शनासी का सिला कर्ब का सहरा हूँ मैं

अब्दुल्लाह कमाल

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