शेर Poetry

'मजाज़' की मौत पर

द्वारका दास शोला

यौम-ए-बर्क़

बिर्ज लाल रअना

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

एहसास-ए-जुर्म

न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा

शाम-ए-ग़म याद नहीं सुब्ह-ए-तरब याद नहीं

ज़ुहैर कंजाही

दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है

ज़ुबैर अली ताबिश

आख़िरश कर लिया क़ुबूल हमें

ज़िया ज़मीर

मिरे जुनूँ में मिरी वफ़ा में ख़ुलूस की जब कमी मिलेगी

ज़िया फ़तेहाबादी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

फ़रिश्ते इम्तिहान-ए-बंदगी में हम से कम निकले

ज़िया फ़तेहाबादी

अब भी कुछ लोग सुनाते हैं सुनाए हुए शेर

ज़ेहरा निगाह

वो जो इक शक्ल मिरे चार तरफ़ बिखरी थी

ज़ेहरा निगाह

रौनक़ें अब भी किवाड़ों में छुपी लगती हैं

ज़ेहरा निगाह

रात गहरी थी फिर भी सवेरा सा था

ज़ेहरा निगाह

दीवार-ओ-दर थे जान सराए निकल गए

ज़ीशान साजिद

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है

ज़ेब ग़ौरी

दिन है बे-कैफ़ बे-गुनाहों सा

ज़ेब ग़ौरी

ज़िंदगी यूँ भी कभी मुझ को सज़ा देती है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

इक इश्क़-ए-ना-तमाम है रुस्वाइयाँ तमाम

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

एहसास का क़िस्सा है सुनाना तो पड़ेगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे

ज़की तारिक़

इस अदा से इश्क़ का आग़ाज़ होना चाहिए

ज़ेब बरैलवी

अब अश्क तो कहाँ है जो चाहूँ टपक पड़े

ज़हूरुल्लाह बदायूनी नवा

गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं

ज़हीर अहमद ताज

मिज़ाज-ए-शे'र को हर दौर में रहा महबूब

ज़ाहिद कमाल

कई दिलों में पड़ी इस से शोर-ओ-शर की तरह

ज़ाहिद फ़ारानी

हर ग़ज़ल हर शेर अपना इस्तिआरा-आश्ना

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

आबा तो 'ज़फ़र' नहीं थे ऐसे

ज़फ़र इक़बाल

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