शोर Poetry

तिरे बग़ैर लग रहा है ये सफ़र ख़मोश है

एज़ाज़ काज़मी

बहुत ख़ूब नक़्शा मिरे घर का है

फ़ारूक़ इंजीनियर

नहीं ख़स्ता-हाली पे ना-मुतमइन हम

अनवर शऊर

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई

नईम गिलानी

ख़ामोशी का शोर

फ़ैसल हाश्मी

सुकूत-ए-शब

अज़हर क़ादिरी

ऐ हवा शोर कर

मोईन निज़ामी

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

घर नहीं बस्ती नहीं शोर-ए-फ़ुग़ाँ चारों तरफ़ है

ज़ुबैर शिफ़ाई

चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा

ज़ुबैर शिफ़ाई

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

सफ़ा और सिद्क़ के बेटे

ज़ुबैर रिज़वी

हम दोनों में कोई न अपने क़ौल-ओ-क़सम का सच्चा था

ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

सँभाला

ज़िया जालंधरी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

कश्कोल है तो ला इधर आ कर लगा सदा

ज़िया जालंधरी

यूँ हसरतों की गर्द में था दिल अटा हुआ

ज़िया फ़तेहाबादी

शहर के एक कुशादा घर में

ज़ेहरा निगाह

ये सच है यहाँ शोर ज़ियादा नहीं होता

ज़ेहरा निगाह

नीम तारीक मोहब्बत

ज़ीशान साहिल

जंग के दिनों में

ज़ीशान साहिल

एक मोर

ज़ीशान साहिल

दूसरा आसमान

ज़ीशान साहिल

चिड़ियों का शोर

ज़ीशान साहिल

अवाम

ज़ीशान साहिल

आधी ज़िंदगी

ज़ीशान साहिल

हम बे-घरों के दिल में जगाती है डर गली

ज़िशान इलाही

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