संबंध Poetry

इस्म-ए-आज़म

मुबश्शिर अली ज़ैदी

कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता

अख़्तर हाशमी

फिर सर-ए-दार-ए-वफ़ा रस्म ये डाली जाए

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

वो आ गया तो सारा परी-ख़ाना जी उठा

ज़ुबैर रिज़वी

दोनों हम-पेशा थे दोनों ही में याराना था

ज़ुबैर रिज़वी

दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है

ज़ुबैर अली ताबिश

भरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा

ज़ुबैर अली ताबिश

कोई भी रस्ता बहुत सोच कर चुनूँगा मैं

ज़िया मज़कूर

फिर उसी धुन में उसी ध्यान में आ जाता हूँ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

जब भी तुझे देखा किसी बोहरान में देखा

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

ज़र्द पत्ते थे हमें और क्या कर जाना था

ज़िया ज़मीर

तक रहा है तू आसमान में क्या

ज़िया ज़मीर

बड़े सलीक़े से तोड़ा मिरा यक़ीन उस ने

ज़िया ज़मीर

हम

ज़िया जालंधरी

सफ़र ख़ुद-रफ़्तगी का भी अजब अंदाज़ था

ज़ेहरा निगाह

गड़ही मेरा

ज़ीशान साहिल

अगर आप

ज़ीशान साहिल

दुनिया वो रास्ते की रुकावट है दोस्तो

ज़ीशान साजिद

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

है बहुत ताक़ वो बेदाद में डर है ये भी

ज़ेब ग़ौरी

अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना

ज़की काकोरवी

दिल है बीमार क्या करे कोई

ज़की काकोरवी

आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया

ज़की काकोरवी

नज़र को वुसअतें दे बिजलियों से आश्ना कर दे

ज़हीर अहमद ताज

हर रोज़ ही इमरोज़ को फ़र्दा न करोगे

ज़हीर काश्मीरी

हमराह लुत्फ़-ए-चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी आएगी

ज़हीर काश्मीरी

वो जितने दूर खिंचते हैं तअल्लुक़ और बढ़ता है

ज़हीर देहलवी

अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या

ज़हीर देहलवी

ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ

ज़फ़र मुरादाबादी

ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ

ज़फ़र मुरादाबादी

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